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________________ सोलहवाँ अध्ययन : द्रौपदी] [४०१ सत्यवाही णवण्हं मासाणं दारियं पयाया। सुकुमालकोमलियं गयतालुयसमाणं। ___ तत्पश्चात् वह पृथ्वीकाय से निकल कर इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, चम्पा नगरी में सागरदत्त सार्थवाह की भद्रा की कुंख में बालिका के रूप में उत्पन्न हुई। तब भद्रा सार्थवाही ने नौ मास पूर्ण होने पर बालिका का प्रसव किया। वह बालिका हाथी के तालु के समान अत्यन्त सुकुमार और कोमल थी। ३५-तीसे दारियाए निव्वत्ते बारसाहियाए अम्मापियरो इमं एयारूवं गोन्नं गुणनिष्फन्नं नामधेजं करेंति-'जम्हा णं अहं एसा दारिया सुकुमाला गयतालुयसमाणातं होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए नामधेनं सुकुमालिया।'तएणं तीसेदारियाए अम्मापियरो नामधेजं करेंति सुकुमालिय त्ति। उस बालिका के बारह दिन व्यतीत हो जाने पर माता-पिता ने उसका यह गुण वाला और गुण से बना हुआ नाम रक्खा-'क्योंकि हमारी यह बालिका हाथी के तालु के समान अत्यन्त कोमल है, अतएव हमारी इस पुत्री का नाम सुकुमालिका हो।' तब बालिका के माता-पिता ने उसका 'सुकुमालिका' ऐसा नाम नियत कर दिया। ३६-तएशंसा सुकुमालिया दारिया पंचधाईपरिग्गहिया, तंजहा-खीरधाईए(मजणधाईए.) मंडणधाईए, अंकधाईए, कीलावणधाईए, जाव [अंकाओ अंकं साहरिजमाणी रम्मे मणिकोट्टिमतले गिरिकंदरमल्लीणा इव चंपकलया निव्वाय-निव्वाघायंसि जाव [सुहंसुहेणं] परिवड्ढइ।तएणं सा सूमालिया दारिया उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण यजोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया [विण्णाणपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता] यावि होत्था। तदनन्तर सुकुमालिका बालिका को पाँच धायों ने ग्रहण किया अर्थात् पाँच धायें उसका पालनपोषण करने लगीं। वे इस प्रकार थीं-(१) दूध पिलाने वाली धाय (२) स्नान कराने वाली धाय (३) आभषण पहनाने वाली धाय (४) गोद में लेने वाली धाय और (५) खेलाने वाली धाय। यावत एक गोद से दूसरी गोद में ले जाई जाती हुई वह बालिका, पर्वत की गुफा में रही हुई चंपकलता जैसे वायुविहीन प्रदेश में व्याघात रहित बढ़ती है, उसी प्रकार सुखपूर्वक बढ़ने लगी। तत्पश्चात् सुकुमालिका बाल्यावस्था से मुक्त हुई, यावत् (समझदार हो गई, यौवन को प्राप्त हुई) रूप से, यौवन से और लावण्य से उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली हो गई। ३७–तत्थं णं चंपाए नयरीए जिणदत्ते नामं सत्थवाहे अड्ढे, तस्सणं जिणदत्तस्स भद्दा भारिया सूमाला इट्ठा जाव माणुस्सए कामभोए पच्चणुब्भवमाणा विहरइ। तस्सं णं जिणदत्तस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सागरए नामं दारए नामं दारए सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे। चम्पा नगरी में जिनदत्त नामक एक धनिक सार्थवाह निवास करता था। उस जिनदत्त की भद्रा नामक पत्नी थी। वह सुकुमारी थी, जिनदत्त को प्रिय थी यावत् मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का आस्वादन करती हुई रहती थी। उस जिनदत्त सार्थवाह का पुत्र और भद्रा भार्या का उदरजात सागर नामक लड़का था। वह भी सुकुमार (हाथों-पैरों वाला) एवं सुन्दर रूप से सम्पन्न था। ३८-तए णं जिणदत्ते सत्थवाहे अन्नया कयाई साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडि
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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