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________________ सोलहवां अध्ययन : द्रौपदी] [३९५ उस्सासेहिं वोसिरामि त्ति कटु आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालगए। . अरिहन्तों यावत् सिद्धिगति को प्राप्त भगवन्तों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक धर्मघोष स्थविर को नमस्कार हो। पहले भी मैंने धर्मघोष स्थविर के पास सम्पूर्ण प्राणातिपात का जीवन पर्यन्त के लिये प्रत्याख्यान किया था, यावत् परिग्रह का भी, इस समय भी मैं उन्हीं भगवन्तों के समीप (उनकी साक्षी से) सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता हूँ यावत् सम्पूर्ण परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूँ जीवन-पर्यन्त के लिए। जैसे स्कंदक मुनि ने त्याग किया, उसी प्रकार यहाँ जानना चाहिए। यावत् अन्तिम श्वासोच्छ्वास के साथ अपने शरीर का भी परित्याग करता हूँ। इस प्रकार कह कर आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधि के साथ मृत्यु को प्राप्त हुए। १९-तए णं ते धम्मघोसा थेरा धम्मरुई अणगारं चिरं गयं जाणित्ता समणे निग्गंथे सद्दावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स मासखमणपारणगंसि सालाइयस्स जाव गाढस्स णिसिरणट्ठयाए बहिया निग्गए चिरावेइ, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेह।' तत्पश्चात् धर्मघोष स्थविर ने धर्मरुचि अनगार को चिरकाल से गया जानकर निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-'देवानुप्रियो! धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पारणक में शरद् संबन्धी यावत् तेल वाला कटुक तुंबे का शाक मिला था। उसे परठने के लिए वह बाहर गये थे। बहुत समय हो चुका है। अतएव देवानुप्रिय! तुम जाओ और धर्मरुचि अनगार की सब ओर मार्गणा-गवेषणा (तलाश) करो।' २०-तए णं ते समणा निग्गंथा जाव पडिसुणेति, पडिसुणित्ता धम्मघोसाणं थेराणं अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेमाणा जेणेव थंडिल्ले तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स सरीरगं निष्पाणं निच्चेठं जीवविप्पजढं पासंति, पासित्ता हा हा! अहो अकज'मिति कटुधम्मरुइस्स अणगारस्स परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति, करित्ता धम्मरुइस्स अणगारस्स आयारभंडगं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव धम्मघोसा थेरा. तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता गमणागमणं पडिक्कमंति, पडिक्कमित्ता एवं वयासी तत्पश्चात् श्रमण निग्रंथों ने अपने गुरु का आदेश अंगीकार किया। अंगीकार करके वे धर्मघोष स्थविर के पास से बाहर निकले। बाहर निकल कर सब ओर धर्मरुचि अनगार की मार्गणा-गवेषणा करते हुए जहाँ स्थंडिलभूमि थी वहाँ आये। आकर देखा-धर्मरुचि अनगार का शरीर निष्प्राण, निश्चेष्ट और निर्जीव पड़ा है। उसे देख कर उनके मुख से सहसा निकल पड़ा-'हा हा! अहो! यह अकार्य हुआ-बुरा हुआ!' इस प्रकार कह कर उन्होंने धर्मरुचि अनगार का परिनिर्वाण होने संबन्धी कायोत्सर्ग किया और आचार-भांडक (पात्र) ग्रहण किये और धर्मघोष स्थविर के निकट पहुँचे। पहुँच कर गमनागमन का प्रतिक्रमण किया। प्रतिक्रमण करके बोले २१–एवं खलु अम्हे तुब्भं अंतियाओ पडिनिक्खमाणो पडिनिक्खमित्ता सुभूमिभागस्स उजाणस्स परिपेरंतेणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेमाणा जेणेव
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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