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चौदहवाँ अध्ययन: तेतलिपुत्र]
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तेयलिपुत्तेणं पासगं गीवाए बंधेत्ता जाव रज्जू छिन्ना, को मेदं सद्दहिस्सइ?
तेयलिपुत्तेणं महासिलयं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि अप्पा मुक्के तत्थ वि यणं थाहे जाए, को मेदं सद्दहिस्सइ? .
तयलिपुत्तेणं सुक्कंसि तणकूडे अग्गी विज्झाए, को मेदं सद्दहिस्सइ ?
ओहयमणसंकप्पे जाव [करयलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए] झियाइ।
तत्पश्चात् तेतलिपुत्र मन ही मन इस प्रकार बोला-'श्रमण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, महान् श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, श्रमण और महान् श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं। मैं ही एक हूँ जो अश्रद्धेय वचन कहता हूँ।
मैं पुत्रों सहित होने पर भी पुत्रहीन हूँ, कौन मेरे इस कथन पर श्रद्धा करेगा? मैं मित्रों सहित होने पर भी मित्रहीन हूँ, कौन मेरी इस बात पर विश्वास करेगा?
इसी प्रकार धन, स्त्री, दास और परिवार से सहित होने पर भी मैं इनसे रहित हूँ, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा?
इस प्रकार राजा कनकध्वज के द्वारा जिसका बुरा विचारा गया है, ऐसे तेतलिपुत्र अमात्य ने अपने मुख में विष डाला, मगर विष ने कुछ भी प्रभाव न दिखलाया, मेरे इस कथन पर कौन विश्वास करेगा?
तेतलिपुत्र ने अपने गले में नील कमल जैसी तलवार का प्रहार किया, मगर उसकी धार कुंठित हो गई, कौन मेरी इस बात परं श्रद्धा करेगा?
तेतलिपुत्र ने अपने गले में फाँसी लगाई, मगर रस्सी टूट गई, मेरी इस बात पर कौन भरोसा करेगा?
तेतलिपुत्र ने गले में भारी शिला बाँधकर अथाह जल में अपने आपको छोड़ दिया, मगर वह पानी थाह-छिछला हो गया, मेरी यह बात कौन मानेगा?
तेतलिपुत्र सूखे घास में आग लगा कर उसमें कूद गया, मगर आग बुझ गई, कौन इस बात पर विश्वास करेगा?
इस प्रकार तेतलिपुत्र भग्नमनोरथ होकर हथेली पर मुख रहकर आर्तध्यान करने लगा।
५०-तए णं से पोट्टिले देवे पोट्टिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता तेयलिपुत्तस्स अदुरसामंते ठिच्चा एवं वयासी-'हं भो तेयलिपुत्ता! पुरओ पवाए, पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति, गामे पलत्ते, रन्ने झियाइ, रन्ने पलित्ते गामे झियाइ, आउसो तेयलिपुत्ता! कओ वयामो?'
तब पोट्टिल देव ने पोट्टिला के रूप की विक्रिया की। विक्रिया करके तेतलिपुत्र से न बहुत दूर और न बहुत पास स्थित होकर इस प्रकार कहा-'हे तेतलिपुत्र! आगे प्रपात (गड़हा) है और पीछे हाथी का भय है। दोनों बगलों में ऐसा अंधकार है कि आँखों से दिखाई नहीं देता। मध्य भाग में बाणों की वर्षा हो रही है। गाँव में आग लगी है और वन धधक रहा है। वन में आग लगी है और गाँव