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________________ ३४०] [ज्ञाताधर्मकथा और नाटक आदि देखते थे और वहाँ की शोभा (आनन्द) का अनुभव करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते थे। महानसशाला १६-तए णं णंदे मणियारसेठ्ठी दाहिणिल्ले वणसंडे एगं महं महाणससालं कारावेई, अणेगखंभसयसन्निविटुं जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिन्नभइभत्तवेयणा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेंति, बहूणं समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणं परिभाएमाणा परिभाएमाणा विहरंति। ____ तत्पश्चात् नन्द मणिकार सेठ ने दक्षिण तरफ के वनखंड में एक बड़ी महानसशाला (भोजनशाला) बनवाई। वह भी अनेक सैकड़ों खंभों वाली यावत् प्रतिरूप (अत्यन्त सुन्दर) थी। वहाँ भी बहुत-से लोग जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गये थे। वे विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार पकाते थे और बहुत से- श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों और भिखारियों को देते रहते थे। चिकित्साशाला १७-तए णं णंदे मणियारसेट्ठी पच्चत्थिमिल्ले वणसंडे एगं महं तेगिच्छियसालं कारेइ, अणेगखंभसयन्निविटुंजाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे वेजा य, वेजपुत्ता य, जाणुया य जाणुयपुत्ता य, कुसला य, कुसलपुत्ता य, दिनभइभत्तवेयणा बहूणं वाहियाणं, गिलाणाण य, रोगियाण य, दुब्बलाण य, तेइच्छं करेमाणा विहरंति।अण्णे य एत्थ बहवे पुरिसा दिनभइभत्तवेयणा तेसिं बहूणं वाहियाणं य रोगियाणं य, गिलाणाण य, दुब्बलाण यओसह-भेसज-भत्त-पाणेणं पडियारकम्म करेमाणा विहरंति। ____ तत्पश्चात् नन्द मणिकार सेठ ने पश्चिम दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चिकित्साशाला (औषधालय) बनवाई। वह भी अनेक सौ खम्भों वाली यावत् मनोहर थी। उस चिकित्साशाला में बहुत से वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञायक (वैद्यक शास्त्र न पढ़ने पर भी अनुभव के आधार से चिकित्सा करने वाले अनुभवी), ज्ञायकपुत्र, कुशल (अपने तर्क से चिकित्सा के ज्ञाता) और कशलपत्र आजीविका, भोजन और वेतन पर नियुक्त किये हए थे। वे बहुत-से व्याधितों (शोक आदि से उत्पन्न चित्त पीड़ा से पीड़ितों) की, ग्लानों (अशक्तों) की, रोगियों (ज्वर आदि से ग्रस्तों) की और दुर्बलों की चिकित्सा करते रहते थे। उस चिकित्साशाला में दूसरे भी बहुत-से लोग आजीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गए थे। वे उन व्याधितों, रोगियों, ग्लानों और दुर्बलों की औषध (एक द्रव्य रूप), भेषज (अनेक द्रव्यों से बनी दवा), भोजन और पानी से सेवा-शुश्रूषा करते थे। अलंकारसभा १८-तए णं णंदे मणियारसेट्ठी उत्तरिल्ले वणसंडे एगं महं अलंकारियसभं कारेइ, अणेगखंभ सयसन्निविट्ठ जाव पडिरूवं। तत्थ णं बहवे अलंकारियपुरिसा दिनभइ-भत्त-वेयणा बहूणं समणाण य, अणाहाण य, गिलाणाण य, रोगियाण य, दुब्बलाण य अलंकारियकम्म करेमाणा करेमाणा विहरंति। तत्पश्चात् नन्द मणिकार सेठ ने उत्तर दिशा में वनखण्ड में एक बड़ी अलंकारसभा (हजामत आदि की सभा) बनवाई। वह भी अनेक सैकड़ों स्तंभों वाली यावत् मनोहर थी। उसमें बहुत-से आलंकारिक
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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