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________________ तेरहवाँ अध्ययन : दर्दुरज्ञात ] हरियगरेरिज्जमाणा सिरीए अईव ] उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठति । तत्पश्चात् नंद मणिकार श्रेष्ठी ने नंदा पुष्कारिणी की चारों दिशाओं में चार वनखण्ड रुपवाये लगवाये। उन वनखण्डों की क्रमशः अच्छी रखवाली की गई, संगोपन - सार सँभाल की गई, अच्छी तरह उन्हें बढ़ाया गया, अतएव वे वनखण्ड कृष्ण वर्ण वाले तथा गुच्छा रूप हो गये - खूब घने हो गये। वे पत्तों वाले, पुष्पों वाले यावत् (फलों से युक्त हरे-भरे और अपनी सुन्दरता से अतीव अतीव ) शोभायमान हो गये। चित्रसभा [ ३३९ १४ – तए णं नंदे मणियारसेट्ठी पुरच्छिमिल्ले वणसंडे एगं महं चित्तसभं कारावेइ, अणेग खंभसयसंनिविट्टं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं । तत्थ णं बहूणि किण्हाणि य जाव (नीलाणि य लोहियाणि य हालिद्दाणि य ) सुक्किलाणि य कट्टकम्माणि य पोत्थकम्माणि य चित्तकम्माणि य लिप्पकम्माणि य गंथिम-वेढिम- पूरिम- संघाइमाई उवदंसिज्जमाणाई उवदंसिज्ज - माणाई चिट्ठति । तत्पश्चात् नंद मणियार सेठ ने पूर्व दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चित्रसभा बनवाई। वह कई सौ खंभों की बनी हुई थी, प्रसन्नताजनक थी, दर्शनीय थी, अभिरूप थी और प्रतिरूप थी। उस चित्रसभा में बहुतसे कृष्णं वर्ण वाले यावत् नील, रक्त, पीत और शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म थे - पुतलियाँ वगैरह बनी थीं, पुस्तकर्म - वस्त्रों के पर्दे आदि थे, चित्रकर्म थे, लेप्यकर्म - मिट्टी के पुतले आदि थे, ग्रंथित कर्म थे - डोरा गूंथ कर बनाई हुई कलाकृतियाँ थीं, वेष्टितकर्म - फूलों की गेंद की तरह लपेट लपेट कर बनाई हुई कलाकृतियाँ थीं, इसी प्रकार पूरिमकर्म (स्वर्ण प्रतिमा के समान) और संघातिमकर्म - जोड़-जोड़ कर बनाई कलाकृतियाँ थीं। वे कलाकृतियाँ इतनी सुन्दर थीं कि दर्शकगण उन्हें एक दूसरे को दिखा-दिखा कर वर्णन करते थे। १५ - तत्थ णं बहूणि आसणाणि य समणीयाणि व अत्थुयपच्चत्थुयाइं चिट्ठति । तत्थ णं बहवे नडा य णट्टा य जाव ( जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंवग-कहग-पवग-लासग-आइक्खगलंख-मंख-तूणइल्ल-तुंबवीणिया य) दिन्नभइभत्तवेयणा तालायरकम्मं करेमाणा विहरंति । रायगिविणिग्गओ एत्थ' बहू जणो तेसु पुव्वन्नत्थेसु आसणसयणेसु संन्निसन्नो य संतुयट्टो य सुणमाणो य पेच्छमाणो य साहेमाणो य सुहंसुहेणं विहरइ । उस चित्रसभा में बहुत-से आसन (बैठने योग्य) और शयन (लेटने - सोने के योग्य) निरन्तर बिछे रहते थे। वहाँ बहुत-से नाटक करने वाले और नृत्य करने वाले, राजा की स्तुति करने वाले, मल्ल - कुश्ती लड़ने वाले, मुष्टियुद्ध करने वाले, विदूषक तथा कहानी सुनाने वाले, प्लवक - तैराक - नदी में तैरने वाले, रास गाने वाले - रासलीला दिखाने वाले अथवा भांड आख्यायिक - शुभ-अशुभ फल का निर्देश करने वाले - ज्योतिषी, लंख - ऊँचे बाँस पर चढ़कर खेल करने वाले, मंख - चित्रपट हाथ में लेकर भिक्षा मांगने वाले, तूण नामक वाद्य बजाने वाले तथा तूंबे की वीणा बजाने वाले पुरुष, जीविका, भोजन एवं वेतन देकर रखे हुए थे। वे तालाच (एक प्रकार का नाटक) किया करते थे । राजगृह से बाहर सैर के लिए निकले हुए बहुत लोग उस जगह आकर पहले से ही बिछे हुए आसनों और शयनों पर बैठकर और लेट कर कथा - वार्त्ता सुनते थे १. पाठान्तर - एत्थ, तत्थ णं
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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