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________________ ३०४] [ज्ञाताधर्मकथा अतिशय खिन्न हो गई। तब वह जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। ६१-तएणं से सेलए जक्खे जिणपालिएणं सद्धिं लवणसमुदं मझं-मझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चंपाए नयरीए अग्गुज्जाणंसि जिणपालियं पिट्ठाओ ओयारेइ, ओयारित्ता एवं वयासी ___ 'एस णं देवाणुप्पिया! चंपा नयरी दीसइ'त्ति कटु जिणपालियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। तत्पश्चात् वह शैलक यक्ष, जिनपालित के साथ, लवणसमुद्र के बीचोंबीच होकर चलता रहा। चल कर जहां चम्पा नगरी थी, वहाँ आया। आकर चम्पा नगरी के बाहर श्रेष्ठ उद्यान में जिनपालित को अपनी पीठ से नीचे उतारा। उतार कर उसने इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय! देखो, यह चम्पा नगरी दिखाई देती है।' यह कह कर उसने जिनपालित से छुट्टी ली। छुट्टी लेकर जिधर से आया था, उधर ही लौट गया। ६२-तए णं जिणपालिए चंपं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सए गिहे, जेणेव अम्मापियरो, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं रोयमाणे जाव' विलवमाणे जिणरक्खियवावत्तिं निवेदेइ। ___तएणं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तणाइ जाव परियणेणं सद्धिं रोयमाणा बहूइंलोइयाई मयकिच्चाई करेन्ति, करित्ता कालेणं विगयसोया जाया। तदनन्तर जिनपालित ने चम्पा में प्रवेश किया और जहाँ अपना घर तथा माता-पिता थे वहाँ पहुँचा। पहुँच कर उसने रोते-रोते और, विलाप करते-करते जिनरक्षित की मृत्यु का समाचार सुनाया। तत्पश्चात् जिनपालित ने और उसके माता-पिता ने मित्र, ज्ञाति, स्वजन यावत् परिवार के साथ रोतेरोते (जिनरक्षित संबन्धी) बहुत से लौकिक मृतककृत्य किये। मृतककृत्य करके वे कुछ समय बाद शोक रहित हुए। ६३-तए णं जिणपालियं अन्नया कयाइ सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी'कहं णं पुत्ता! जिणरक्खिए कालगए?' । तत्पश्चात् एक बार किसी समय सुखासन पर बैठे जिनपालित से उसके माता-पिता ने इस प्रकार प्रश्न किया-'हे पुत्र! जिनरक्षित किस प्रकार कालधर्म (मृत्यु) को प्राप्त हुआ?' ६४-तए णं जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारं च कालियवाय-समुत्थणंच पोयवहणविवत्तिं च फलगखंडआसायणंच रयणदीवुत्तारं च रयणदीवदेवयागिहं च भोगविभूई च रयणदीवदेवयाघायणं च सूलाइयपुरिसदरिसणंच सेलगजक्खआरुहणं च रयणदीवदेवयाउवसग्गं च जिणरक्खियविवत्तिं च लवणसमुद्दउत्तरणं च चंपागमणं च सेलगजक्खआपुच्छणं च जहाभूयमवितहमसंदिद्धं परिकहेइ। १. नवम अ. ४७ २. पाठान्तर-गिण्हणं ३. पाठान्तर-देवयाप्पाहणं।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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