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नवम अध्ययन : माकन्दी]
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तब जिनपालित ने माता-पिता से अपना लवणसमुद्र में प्रवेश करना, तूफानी हवा का उठना, पोतवाहन का नष्ट होना, पटिया का टुकड़ा मिलना, रत्नद्वीप में जाना, रत्नद्वीप की देवी के घर जाना, वहाँ के भोगों का वैभव, रत्नद्वीप की देवी के वधस्थान पर जाना, शूली पर चढ़े पुरुष को देखना, शैलक यक्ष की पीठ पर आरूढ़ होना, रत्नद्वीप की देवी द्वारा उपसर्ग होना, जिनरक्षित का मरण होना, लवणसमुद्र को पार करना, चम्पा में आना और शैलक यक्ष द्वारा छुट्टी लेना, आदि सर्व वृत्तान्त ज्यों का त्यों, सच्चा और असंदिग्ध कह
सुनाया।
६५-तए णं जिणपालिए जाव अप्पसोगे जाव विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तब जिनपालित यावत् शोकरहित होकर यावत् विपुल कामभोग भोगता हुआ रहने लगा।
६६-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव समोसढे।परिसा निग्गया। कूणिओ वि राया निग्गओ। जिणपालिए धम्म सोच्चा पव्वइए। एक्कारसअंगविऊ, मासिएणं भत्तेणं जाव सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने, दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता, जाव महाविदेहे सिज्झिहिइ।
. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पधारे। भगवान् को वन्दना करने के लिए परिषद् निकली। कूणिक राजा भी निकला। जिनपालित ने धर्मोपदेश श्रवण करके दीक्षा अंगीकार की। क्रमश: ग्यारह अंगों का ज्ञाता होकर, अन्त में एक मास का अनशन करके यावत् सौधर्म कल्प में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ दो सागरोपम की उसकी स्थिति कही गई है। वहाँ से च्यवन करके यावत् महा-विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा।
६७-एवामेव समणाउसो! जावमाणुस्सए कामभोगेणो पुणरवि आसाइ, सेणं जाव वीइवइस्सइ, जहा वा से जिणपालिए।
इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो! आचार्य-उपाध्याय के समीप दीक्षित होकर जो साधु या साध्वी मनुष्य-संबन्धी कामभोगों की पुनः अभिलाषा नहीं करता, वह जिनपालित की भाँति यावत् संसार-समुद्र को पार करेगा।
६८–एवं खलु जंबु! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि॥
इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नौवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ प्ररूपण किया है। जैसा मैंने सुना है, उसी प्रकार तुमसे कहता हूँ। (ऐसा सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी से कहा।)
॥ नववाँ अध्ययन समाप्त ॥