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नवम अध्ययन : माकन्दी
सार : संक्षेप
आप्त जनों ने संक्षिप्त सूत्र में साधना का मूलभूत रहस्य प्रकट करते महत्त्वपूर्ण सूचना दी है-'एगे जिए जिया पंच।' अर्थात् एक मन पर विजय प्राप्त कर ली जाय तो पाँचों इन्द्रियों पर सरलता से विजय प्राप्त की जा सकती है। किन्तु मन पर विजय प्राप्त करना साधारण कार्य नहीं। मन बड़ा ही साहसिक, चंचल और हठीला होता है। उसे जिस ओर जाने से रोकने का प्रयास किया जाता है, उसी ओर वह हठात् जाता है। ऐसी स्थिति में उसे वशीभूत करना बहुत कठिन है। तीव्रतर संकल्प हो, उस संकल्प को बारम्बार दोहराते रहा जाए, निरन्तर सतर्क-सावधान रहा जाए, अभ्यास और वैराग्यवृत्ति का आसेवन किया जाए, धर्मशिक्षा को सदैव जागत रखा जाए तो उसे वश में किया जा सकता है। शास्त्रों में नाना प्रकार के जिन अनुष्ठानों का, क्रियाकलापों का वर्णन किया गया है, उनका प्रधान उद्देश्य मन को वशीभूत करना ही है।
इन्द्रियाँ मन की दासी हैं । जब मन पर आत्मा का पूरा अधिकार हो जाता है तो इन्द्रियां अनायास ही काबू में आ जाती हैं।
इसके विपरीत मन यदि स्वच्छन्द रहा तो इन्द्रियाँ भी निरंकुश होकर अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त होती हैं और आत्मा पतन की दिशा में अग्रसर हो जाता है। उसके पतन की सीमा नहीं रहती। 'विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपातः शतमुखः' वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है। जीवन में जब यह स्थिति उत्पन्न होती है तो इहभव और परभव-दोनों दुःखदायी बन जाते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में इसी तथ्य को सरल-सुगम उदाहरण रूप में प्रकट किया गया है।
चम्पा नगरी के निवासी माकन्दी सार्थवाह के दो पुत्र थे-जिनपालित और जिनरक्षित। वे ग्यारह बार लवणसमुद्र में यात्रा कर चुके थे। उनकी यात्रा का उद्देश्य व्यापार करना था। वे जब भी समुद्रयात्रा पर गए, अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करके लौटे। इससे उनका साहस बढ़ गया। उन्होंने बारहवीं बार समुद्रयात्रा करने का निश्चय किया। माता-पिता से अनुमति मांगी।
. माता-पिता ने उन्हें यात्रा करने से रोकना चाहा। कहा-पुत्रो! दादा और पड़दादा द्वारा उपार्जित धनसम्पत्ति प्रचुर परिमाण में अपने पास विद्यमान है। सात पीढ़ियों तक उपभोग करने पर भी वह समाप्त नहीं होगी। समाज में हमें पर्याप्त प्रतिष्ठा भी प्राप्त है। फिर अनेकानेक विघ्नों से परिपूर्ण समुद्रयात्रा करने की क्या आवश्यकता है ? इसके अतिरिक्त बारहवीं यात्रा अनेक संकटों से परिपूर्ण होती है। अतएव यात्रा का विचार स्थगित कर देना ही उचित है।
बहुत समझाने-बुझाने पर भी जवानी के जोश में लड़के न माने और यात्रा पर चल पड़े। समुद्र में काफी दूर जाने पर माता-पिता का कहा सत्य प्रत्यक्ष होने लगा। अकाल में मेघों की भीषण गर्जना होने लगी, आकाश में बिजली तांडव नृत्य करने लगी और प्रलयकाल जैसी भयानक आँधी ने रौद्र रूप धारण कर लिया।