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________________ २७८] [ज्ञाताधर्मकथा केवलणाणीणं, पणतीसं सया वेउव्वियाणं, अट्ठसया मणपज्जवणाणीणं चोइससया वाईणं, वीसं सया अणुत्तरोववाइयाणं (संपया होत्था)। मल्ली अरहन्त के भिषक (या किंशुक) आदि अट्ठाईस गण और अट्ठाईस गणधर थे। मल्ली अरहन्त की चालीस हजार साधुओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी। बंधुमती आदि पचपन हजार आर्यिकाओं की सम्पदा थी। मल्ली अरहन्त की एक लाख चौरासी हजार श्रावकों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। मल्ली अरहन्त की तीन लाख पैंसठ हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी। मल्ली अरहन्त की छह सौ चौदहपूर्वी साधुओं की, दो हजार अवधिज्ञानी, बत्तीस सौ केवलज्ञानी, पैंतीस सौ वैक्रियलब्धिधारों, आठ सौ मनःपर्यायज्ञानी, चौदह सौ वादी और बीस सौ अनुत्तरौपपातिक (सर्वार्थसिद्ध आदि विमानों में जाकर फिर एक भव लेकर मोक्ष जाने वाले) साधुओं की सम्पदा थी। १९३-मल्लिस्स अरहओ दुविहा अंतगडभूमी होत्था। तंजहा-जुगंतकरभूमी, परियायंतकरभूमी य। जाव वीसइमाओ पुरिसजुगाओ जुयंतकरभूमि, दुवासपरियाए अंतमकासी। मल्ली अरहन्त के तीर्थ में दो प्रकार की अन्तकर भूमि हुई। वह इस प्रकार-युगान्तकर भूमि और पर्यायान्तकर भूमि। इनमें से शिष्य-प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक अर्थात् बीसवें पाट तक युगान्तर भूमि हुई, अर्थात् बीस पाट तक साधुओं ने मुक्ति प्राप्त की। (बीसवें पाट के पश्चात् उनके तीर्थ में किसी ने मोक्ष प्राप्त नहीं किया।) और दो वर्ष का पर्याय होने पर अर्थात् मल्ली अरहन्त को केवलज्ञान प्राप्त किये दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर पर्यायान्तकर भूमि हुई-भव-पर्याय का अन्त करने वाले–मोक्ष जाने वाले साधु हुए। (इससे पहले कोई जीव मोक्ष नहीं गया।) १९४-मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूणि उड्ढे उच्चत्तेणं, वण्णेणं पियंगुसमे, समचउरंस-संठाणे, वज्जरिसभनारायसंघयणे, मज्झदेसे सुहं सुहेणं विहरित्ता जेणेव संमेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता संमेयसेलसिहरे पाओवगमणमणुववन्ने। ___ मल्ली अरहन्त पच्चीस धनुष ऊँचे थे। उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था। समचतुरस्त्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन था। वह मध्यदेश में सुख-सुखे विचर कर जहाँ सम्मेद पर्वत था, वहाँ आये। आकर उन्होंने सम्मेदशैल के शिखर पर पादोपगमन अनशन अंगीकार कर लिया। १९५-मल्ली णं एगं वाससयं आगारवासं पणपण्णं वाससहस्साई वाससयऊणाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, पणपण्णं वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चित्तसुद्धे, तस्स णं चेत्तसुद्धस्स चउत्थीए भरणीए णक्खत्तेणं अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहिं अज्जियासएहिं अभितरियाए परिसाए, पंचहिं अणगारसएहिं बाहिरियाए परिसाए, मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं, वग्घारियपाणी, खीणे वेयणिज्जे आउए नामे गोए सिद्धे। एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए, नंदीसरे अट्ठाहियाओ, पडिगयाओ। १. पाठान्तर-चउमासपरियाए
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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