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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली] [२७७ सबने धर्मोपदेश श्रवण किया। नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया। फिर जिस दिशा से प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गये। कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए निकला। १८८-तएणं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पिय रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावित्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ (सीयाओ) दुरूढा सव्विड्डिए जाव रवेणं जेणेव मल्ली अरहा जाव पज्जुवासंति। तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्य पर स्थापित करके, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविकाओं पर आरूढ़ होकर समस्त ऋद्धि (पूरे ठाठ) के साथ यावत् गीतवादित्र के शब्दों के साथ जहाँ मल्ली अरहन्त थे, यावत् वहाँ आकर उनकी उपासना करने लगे। १८९-तए णं मल्ली अरहा तीसे महइ महालियाए कुम्भगस्स रन्नो तेसिं च जियसत्तुपामोक्खाणंधम्मं कहेइ।परिसा जामेव दिसिंपाउन्भूआ तामेव दिसिंपडिगया कुम्भए समणोवासए जाए, पडिगए, पभावई य समणोवासिया जाया, पडिगया। तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त ने उस बड़ी भारी परिषद् को, कुम्भ राजा को और उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को धर्म का उपदेश दिया। परिषद् जिस दिशा से आई थी, उस दिशा में लौट गई। कुम्भ राजा श्रमणोपासक हुआ। वह भी लौट गया। रानी प्रभावती श्रमणोपासिका हुई। वह भी वापिस चली गई। १९०-तएणं जियसत्तुपामोक्खा छप्पिय रायाणो धम्मं सोच्चा आलित्तेणंभंते [लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्तपलित्तेणं भंते! लोए, जराए मरणेण य] जाव पव्वइया।चोद्दसपुव्विणो, अणंते केवले, सिद्धा। तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने धर्म को श्रवण करके कहा-भगवन् ! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त हैं-जल रहा है, प्रदीप्त है-भयंकर रूप से जल रहा है और आदीप्त प्रदीप्त है-अत्यन्त उत्कटता से जल रहा है, इत्यादि कहकर यावत् वे दीक्षित हो गये। चौदह पूर्वो के ज्ञानी हुए, फिर अनन्त केवल-ज्ञान-दर्शन प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए। १९१–तए ण मल्ली अरहा सहसंबवणाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तत्पश्चात् (किसी समय) मल्ली अरहन्त सहस्राम्रवन उद्यान से बाहर निकले। निकलकर जनपदों से विहार करने लगे। १९२-मल्लिस्स णं अरहओ भिसग (किंसुय) पामोक्खा अट्ठावीसं गणा, अट्ठावीसं गणहरा होत्था। मल्लिस्सणं अरहओ चत्तालीसंसमणसाहस्सीओ उक्कोसियाओ, बंधुमतीपामोक्खाओ पणपण्णं अज्जियासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया होत्था। मल्लिस्स णं अरहओ सावयाणं एगा सयसाहस्सीओ चुलसीइंच सहस्सा उक्कोसिया सावया होत्था। मल्लिस्सणं अरहओ सावियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ पण्णढिंच सहस्सा संपया होत्था। मल्लिस्स णं अरहओ छस्सया चोद्दसपुव्वीणं, वीससया ओहिनाणीणं, बत्तीसं सया
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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