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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
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ही एक हजार आठ स्वर्णकलश आदि यावत् दूसरी अभिषेक के योग्य सामग्री उपस्थित करो।' यह सुन कर आभियोगिक देवों ने भी सब सामग्री उपस्थित की। वे देवों के कलश उन्हीं मनुष्यों के कलशों में (दैवी माया से) समा गये।
१७०-तए णं से सक्के देविंदे देवराया कुंभराया य मल्लिं अरहं सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहं निवेसेइ, अट्ठासहस्सेणं सोवणियाणं जाव अभिसिंचइ।
तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र और कुम्भ राजा ने मल्ली अरहन्त को सिंहासन के ऊपर पूर्वाभिमुख आसीन किया। फिर सुवर्ण आदि के एक हजार आठ पूर्वोक्त कलशों से यावत् उनका अभिषेक किया।
१७१–तए णं मल्लिस्स भगवओअभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा मिहिलंच सब्भितरं बाहिरियं जाव सव्वओ समंता आधावंति परिधावंति।
__ तत्पश्चात् जब मल्ली भगवान् का अभिषेक हो रहा था, उस समय कोई-कोई देव मिथिला नगरी के भीतर और बाहर यावत् सब दिशाओं-विदशाओं में दौड़ने लगे-इधर-उधर फिरने लगे।
१७२-तएणं कुंभए राया दोच्चं पिउत्तरावक्कमणं सीहासणंरयावेइ जाव सव्वालंकार विभूसियं करेइ, करित्ता कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ। सद्दावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव मणोरमं सीयं उवट्ठवेह।' ते वि उवट्ठति।
तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने दूसरी बार उत्तर दिशा में सिंहासन रखवाया यावत् भगवान् मल्ली को सर्व अलंकारों से विभूषित किया। विभूषित करके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा'शीघ्र ही मनोरमा नाम की शिविका (तैयार करके) लाओ।' कौटुम्बिक पुरुष मनोरमा शिविका-पालकी ले आए।
१७३-तए णं सक्के देविंदे देवराया आभियोगिए सद्दावेइ, सहावित्ता एवं वयासी'खिप्यामेव अणेगखंभंजाव मनोरमं सीयं उवट्ठवेह।' जाव सावि सीया तं चेव सीयं अणुपविट्ठा।
तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा-'शीघ्र ही अनेक खम्भों वाली यावत् मनोरमा नामक शिविका उपस्थित करो।' तब वे देव भी मनोरमा शिविका लाये और वह शिविका भी उसी मनुष्यों की शिविका में समा गई।
__ १७४–तए णं मल्ली अरहा सीहासणाओ अब्भुट्टित्ता जेणेव मणोरमा सीया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं अणुपयाहिणी करेमाणा मणोरमं सीयं दुरूहइ।दुरूहित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त सिंहासन से उठे। उठकर जहां मनोरमा शिविका थी, उधर आये, आकर मनोरमा शिविका की प्रदक्षिणा करके मनोरमा शिविका पर आरूढ़ हुए। आरूढ़ होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर विराजमान हुए।
१७५-तएणं कुंभए राया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ।सद्दावित्ता एवं वयासी'तुब्भेणं देवाणुप्पिया! ण्हाया जाव (कयबलिकम्मा कयकोउअमंगलपायच्छित्ता) सव्वालंकारविभूसिया मल्लिस्स सीयं परिवहह।' तेवि जाव परिवहंति।