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________________ २७४] [ ज्ञाताधर्मकथा तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने अठारह जातियों-उपजातियों को बुलवाया। बुलवा कर कहा - 'हे देवानुप्रियो ! तुम लोग स्नान करके यावत् [ बलिकर्म करके तथा कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करके ] तथा सर्व अलंकारों से विभूषित होकर मल्ली कुमारी की शिविका वहन करो।' यावत् उन्होंने शिविका वहन की। १७६–तए णं सक्के देविंदे देवराया मणोरमाए दक्खिणिल्लं उवरिल्लं बाहं गेहड़, ईसाणे उत्तरिल्लं बाहं गेण्हइ, चमरे दाहिणिल्लं हेट्ठिल्लं, बली उत्तरिल्लं हेट्ठिल्लं । अवसेसा देवा जहारिहं मणोरमं सीयं परिवहंति । तत्पश्चात् शक्र देवेन्द्र देवराज ने मनोरमा शिविका की दक्षिण तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की ( वहन की), ईशान इन्द्र ने उत्तर तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, चमरेन्द्र ने दक्षिण तरफ की और बली ने उत्तर तरफ की निचली बाहा ग्रहण की। शेष देवों ने यथायोग्य उस मनोरमा शिविका को वहन किया । १७७ - पुव्विं उक्खित्ता माणुस्सेहिं, तो हट्ठरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदनागेंदा ॥ १ ॥ चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । देविंददाणविंदा, वहन्ति सीयं जिणिंदस्स ॥ २ ॥ मनुष्यों ने सर्वप्रथम वह शिविका उठाई। उनके रोमकूप ( रोंगटे) उसके बाद असुरेन्द्रों, सुरेन्द्रों और नागेन्द्रों ने उसे वहन किया ॥ १ ॥ चलायमान चपल कुण्डलों को धारण करने वाले तथा अपनी इच्छा के अनुसार विक्रिया से बनाये हुए आभरणों को धारण करने वाले देवेन्द्रों और दानवेन्द्रों ने जिनेन्द्र देव की शिविका वहन की। १७८ - तए णं मल्लिस्स अरहओ मणोरमं सीयं दुरूढस्स इमे अट्ठट्ठमंगलगा अहाणुपुव्वीए एवं निग्गमो जहा जमालिस्स । के कारण विकस्वर हो रहे थे । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जब मनोरमा शिविका पर आरूढ़ हुए, उस समय उनके आगे आठ-आठ मंगल अनुक्रम से चले। भगवतीसूत्र में वर्णित जमालि के निर्गमन की तरह यहाँ मल्ली अरहंत के निर्गमन का वर्णन समझ लेना चाहिए । विवेचन - सूत्र में जिन आठ मंगलों का उल्लेख है, वे इस प्रकार हैं - (१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स (३) नंदिकावर्त्त (नन्द्यावर्त्त), (४) वर्द्धमानक, (५) भद्रासन, (६) कलश, (७) मत्स्य और (८) दर्पण | तीर्थंकर के वक्षस्थल में उठे हुए अवयव के आकर का विशेष प्रकार का चिह्न श्रीवत्स कहलाता है। प्रत्येक दिशा में नव कोण वाला साथिया नंदिकावर्त्त है। शराव (सिकोरे) को वर्द्धमानक कहते हैं । एक विशेष प्रकार का सुखद सिंहासन भद्रासन है। कलश, मत्स्य और दर्पण प्रसिद्ध हैं। जमालि के निष्क्रमण का वर्णन भगवतीसूत्र में है। प्रस्तुत शास्त्र में प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार के निष्क्रमण से भी उसे समझा जा सकता है। १७९ – तए णं मल्लिस्स अरहओ निक्खममाणस्स अप्पेइगया देवा मिहिलं रायहाणिं अभितर बाहिरं आसियसंमज्जिय-संमट्ठ- सुइ-रत्थंतरावणवीहियं करेंति जाव परिधावति । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जब दीक्षा धारण करने के लिए निकले तो किन्हीं - किन्हीं देवों ने मिथिला
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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