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________________ २६६] [ज्ञाताधर्मकथा खलु अहं देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गा जाव पव्वयामि, तं तुब्भेणं किं करेह ? किं ववसह? किं भे हियइच्छिए सामत्थे ?' ___ तत्पश्चात् अरिहंत मल्ली ने जितशत्रु वगैरह छहों राजाओं से कहा-हे देवानुप्रियो ! निश्चित् रूप से मैं संसार के भय से (जन्म-जरा-मरण से) उद्विग्न हुई हूँ, यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ। तो आप क्या करेंगे? कैसे रहेंगे? आपके हृदय का सामर्थ्य कैसा है ? अर्थात् भाव या उत्साह कैसा है ? १४७–तए णं जितसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो मल्लि अरहं एवं वयासी-'जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विगा जाव पव्वयह, अम्हाणं देवाणुप्पिया ! के अण्णे आलंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा? जह चेव णं देवाणुप्पिया ! तुब्भे अम्हे इओ तच्चे भवग्गहणे बहुसु कज्जेसु य मेढी पमाणंजाव धम्मधुरा होत्था, तहा चेवणं देवाणुप्पिया ! इण्हि पिजाव भविस्सह। अम्हे वि य णं देवाणुप्पिया ! संसारभयउव्विग्गा जाव भीया जम्ममरणाणं, देवाणुप्पियाणं सद्धिं मुंडा भवित्ता जाव पव्वयामो।' तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने मल्ली अरिहंत से इस पकार कहा–'हे देवानुप्रिये ! अगर आप संसार के भय से उद्विग्न होकर यावत् दीक्षा लेती हो, तो हे देवानुप्रिये ! हमारे लिए दूसरा क्या आलंबन, आधार या प्रतिबन्ध है ? हे देवानुप्रिये ! जैसे आप इस भव से पूर्व के तीसरे भव में, बहुत कार्यों में हमारे लिए मेढ़ीभूत, प्रमाणभूत और धर्म की धुरा के रूप में थीं, उसी प्रकार हे देवानुप्रिये ! अब (इस भव में) भी होओ। हे देवानुप्रिया ! हम भी संसार के भय से उद्विग्न हैं यावत् जन्म-मरण से भयभीत हैं; अतएव देवानुप्रिया के साथ मुण्डित होकर यावत् दीक्षा ग्रहण करने को तैयार हैं।' __१४८-तएणं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-तंणं तुब्भे संसारजयउव्विग्गा जाव मए सद्धिं पव्वयह, तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सएहिं सएहिं रज्जेहिं जेटे पुत्ते रजे ठावेह, ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूहइ। दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह। तत्पश्चात् अरिहंत मल्ली ने उन जितशत्रु प्रभृति राजाओं से कहा-'अगर तुम संसार के भय से उद्विग्न हुए हो, यावत् मेरे साथ दीक्षित होना चाहते हो, तो जाओ देवानुप्रियो! अपने-अपने राज्य में और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य पर प्रतिष्ठित करो। प्रतिष्ठित करके हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ़ होओ। आरूढ़ होकर मेरे समीप आओ।' १४९-तए णं जियसत्तुपामोक्खा मल्लिस्स अरहओ एयमझें पडिसुणेति। तत्पश्चात् उन जितशत्रु प्रभृति राजाओं ने मल्ली अरिहंत के इस अर्थ (कथन) को अंगीकार किया। १५०-तए णं मल्ली अरहा ते जितसत्तुपामोक्खे गहाय जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडेइ। तए णं कुंभए राया ते वियसत्तुपामोक्खे विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुष्फवत्थ-गंध-मल्ललंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता पडिविसज्जेइ। तत्पश्चात् मल्ली अरिहंत उन जितशत्रु वगैरह को साथ लेकर जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आई।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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