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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ] [ २६५ - १४३ – तए णं तुब्भे देवाणुप्पिया! कालमासे कालं किच्या जयंते विमाणे उववण्णा । तत्थ णं तुब्भे देसूणाई बत्तीसाई सागरोवमाई ठिई । तए णं तुब्भे ताओ देवलोयाओ अनंतरं चयं चइत्ता इव जंबुद्दीवे दीवे जाव साईं साइं रज्जाई उवसंपज्जित्ता णं विहरह । तणं अहं देवाणुप्पिया! ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव दारियत्ताए पच्चायायाकिंथ तयं पम्हुट्ठ, जंथ तया भो जयंत पवरम्मि । वुत्था समयनिबद्धं, देवा! तं संभरह जाई ॥ १ ॥ तत्पश्चात् हे देवानुप्रियो ! तुम कालमास में काल करके - यथासमय देह त्याग कर जयन्त विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ तुम्हारी कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। तत्पश्चात् तुम उस देवलोक से अनन्तर (सीधे) शरीर त्याग करके - चय करके - इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्पन्न हुए, यावत् अपने-अपने राज्य प्राप्त करके विचर रहे हो । मैं उस देवलोक से आयु का क्षय होने पर कन्या के रूप में आई हूँ - जन्मी हूँ । क्या तुम वह भूल गये ? जिस समय हे देवानुप्रिय ! तुम जयन्त नामक अनुत्तर विमान में वास करते थे? वहाँ रहते हुए 'हमें एक दूसरे को प्रतिबोध देना चाहिए' ऐसा परस्पर में संकेत किया था। तो तुम देवभव का स्मरण करो । १४४ - तए णं तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं रायाणं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म सुभेणं परिणामेणं, पसत्थेणं अज्झवसाणेणं, लेसाहिं विसुज्झमणीहिं, तयावरणिज्जणं कम्माणं खओवसमेणं ईहा- वूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणाणं सणिपुव्वे जाइस्सरणे समुप्पन्ने। एयमट्टं सम्मं अभिसमागच्छंति । तत्पश्चात् विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली से पूर्वभव का यह वृत्तान्त सुनने और हृदय में धारण करने से, शुभ परिणामों, प्रशस्त अध्यवसायों, विशुद्ध होती हुई लेश्याओं और जातिस्मरण को आच्छादित करने वाले कर्मों के क्षयोपशम के कारण, ईहा – अपोह (सद्भूत - असद्भूत धर्मों की पर्यालोचना) तथा मार्गणा और गवेषणा - विशेष विचार करने से जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को ऐसा जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ कि जिससे वे संज्ञी अवस्था के अपने पूर्वभव को देख सके। इस ज्ञान के उत्पन्न होने पर मल्ली कुमारी द्वारा कथित अर्थ - वृत्तान्त को उन्होंने सम्यक् प्रकार से जान लिया । १४५ – तए णं मल्ली अरहा जियसत्तुपामोक्खे छप्पि रायाणो समुप्पण्णजाइसरणे जाणित्ता गब्भघराणं दाराई विहाडावे । तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति । तए णं महब्बलपामोक्खा सत्त वि य बालवयंसा एगयओ अभिमन्नागा यावि होत्था । तत्पश्चात् मल्ली अरिहंत ने जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया गर्भगृहों के द्वार खुलवा दिये। तब जितशत्रु वगैरह छहों राजा मल्ली अरिहंत के पास आये। उस समय (पूर्वजन्म के ) महाबल आदि सातों बालमित्रों का परस्पर मिलन हुआ । १४६ - तए णं मल्ली अरहा जियसत्तुपामोक्खे छप्पि य रायणो एवं वयासी – ' एवं
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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