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________________ २६४] [ज्ञाताधर्मकथा अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं सहएिं जाव चिट्ठामो।' तत्पश्चात् जितशत्रु वगैरह ने उस अशुभ गंध से अभिभूत होकर-घबरा कर अपने-अपने उत्तरीय वस्त्रों से मुँह ढंक लिया। मुँह ढंक कर वे मुख फेर कर खड़े हो गये। ___ तब विदेहराजवरकन्या मल्ली ने उस जितशत्रु आदि से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो! किस कारण आप अपने-अपने उत्तरीय वस्त्र से मुँह ढंक कर यावत् मुँह फेर कर खड़े हो गये?' तब जितशत्रु आदि ने विदेहराजकवरकन्या मल्ली से कहा-'देवानुप्रिये! हम इस अशुभ गंध से घबरा कर अपने-अपने यावत् उत्तरीय वस्त्र से मुख ढंक कर विमुख हुए हैं।' १४१-तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-'जइ ताव देवानुप्पिया! इमीसे कणगमईए जाव पडिमाए कल्लाकल्लि ताओ मणुण्णाओ असण-पाणखाइम-साइमाओ एगमेगे पिंडे पक्खिप्पमाणे पक्खिप्पमाणे इमेयारूवे असुभे पोग्गलपरिणामे, इमस्स पुण ओरालियसरीरस्स खेलासवस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कसोणियपूयासवस्स दुरूवऊसास-नीसासस्स दुरूव-मूतपूतिय-पुरीस-पुण्णस्स सडण-पडण-छयण-विद्धंसणधम्मस्स केरिसए परिणामे भविस्सइ ? तं माणं तुब्भे देवाणुप्पिया! माणुस्सएसुकामभोगेसु रन्जह, गिज्झह, मुज्झइ, अज्झोववज्जह।' ___ तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने उन जितशत्रु आदि राजाओं से इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो! इस स्वर्णमयी (यावत्) प्रतिमा में प्रतिदिन मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार में से एक-एक पिण्ड डालते-डालते यह ऐसा अशुभ पुद्गल का परिणमन हुआ, तो यह औदारिक शरीर तो कफ को झराने वाला है, खराब उच्छ्वास और निःश्वास निकालने वाला है, अमनोज्ञ मूत्र एवं दुर्गन्धित मल से परिपूर्ण है, सड़ना, पड़ना, नष्ट होना और विध्वस्त होना इसका स्वभाव है, तो इसका परिणमन कैसा होगा? अतएव हे देवानुप्रियो! आप मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों में राग मत करो, गृद्धि मत करो, मोह मत करो और अतीव आसक्त मत होओ।' १४२-एवं खलु देवाणुप्पिया! तुम्हे अम्हे इमाओ तच्चे भवग्गहणे अवरविदेहवासे सलिलावइंसि विजए वीयसोगाए रायहाणीए महब्बलपामोक्खा सत्त विय बालवयंसगा रायाणो होत्था, सह जाया जाव पव्वइया। तएणं अहं देवाणुप्पिया! इमेणं कारणेणं इत्थीनामगोयं कम्मं निव्वत्तेमि-जइणं तुब्भे चउत्थं उवसंपजित्ताणं विहरह, तए णं अहं छटुं उवसंपजित्ता णं विहरामि। सेसं तहेव सव्वं। मल्ली कुमारी ने पूर्वभव का स्मरण कराते हुए आगे कहा-'इस प्रकार हे देवानुप्रियो! तुम और हम इससे पहले के तीसरे भव में, पश्चिम महाविदेहवर्ष में, सलिलावती विजय में, वीतशोका नामक राजधानी में महाबल आदि सातों-मित्र राजा थे। हम सातों साथ जन्मे थे, यावत् साथ ही दीक्षित हुए थे। ___हे देवानुप्रियो! उस समय इस कारण से मैने स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन किया था-अगर तुम लोग एक उपवास करके विचरते थे, तो मैं तुम से छिपकर बेला करती थी, इत्यादि सब वृत्तान्त पूर्ववत् समझना चाहिए।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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