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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ] [२५९ कुम्भ राजा उन दूतों से यह बात सुनकर एकदम क्रुद्ध हो गया । [ रुष्ट और प्रचंड हो उठा। दांत पीसते हुए] यावत् ललाट पर तीन सल डाल कर उसने कहा- 'मैं तुम्हें (छह में से किसी भी राजा को ) विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली नहीं देता।' ऐसा कह कर छहों का सत्कार सम्मान न करके उन्हें पीछे के द्वार से निकाल दिया। १२६ - तए णं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया कुंभएणं रण्णा असक्कारिया असम्माणिया अवद्दारेणं निच्छुभाविया समाणा जेणेव सगा सगा जणवया, जेणेव सयाइं सयाई णगराई जेणेव सगा सगा रायाणो तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छित्ता करयलपरिंग्गहियं एवं वयासी कुम्भ राजा के द्वारा असत्कारित, असम्मानित और अपद्वार ( पिछले द्वार) से निष्कासित वे छहों राजाओं के दूत जहाँ अपने-अपने जनपद थे, जहाँ अपने-अपने नगर थे और जहाँ अपने-अपने राजा थे, वहाँ पहुँचे। पहुँच कर हाथ जोड़ कर एवं मतस्क पर अंजलि करके इस प्रकार कहने लगे १२७ – एवं खलु सामी! अम्हे जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जेणेव मिहिला जाव अवद्दारेणं निच्छुभावेइ, तं न देइ णं सामी ! कुंभए राया मल्लिं विदेहरायवरकन्नं, साणं साणं राई एट्टं निवेदेंति । 'इस प्रकार हे स्वामिन्! हम जितशत्रु वगैरह छह राजाओं के दूत एक ही साथ जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ पहुँचे। मगर यावत् राजा कुम्भ ने सत्कार-सम्मान न करके हमें अपद्वार से निकाल दिया । सो हे स्वामिन्! कुम्भ राजा विदेहराजवरकन्या मल्ली आप को नहीं देता।' दूतों ने अपने-अपने राजाओं से यह अर्थ - वृत्तान्त निवेदन किया। युद्ध की तैयारी १२८ - तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता अण्णमणस्स दूयसंपेसणं करेंति, करित्ता एवं वयासी— 'एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जाव णिच्छूढा, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं कुंभगस्स जत्तं ( जुत्तं ) गेण्हित्तए' त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयमट्ठ पडिसुर्णेति, पडिणित्ता पहाया सण्णद्धा हत्थिखंधवरगया सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाण महयाहय-गय-रह-पवरजोह - कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्डीए जाव दुंदुभिनाइयरवेणं सएहिंतो सएहिंतो नगरेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता ओ मिलायंति, मिलाइत्ता जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा उन दूतों से इस अर्थ को सुनकर और समझकर एकदम कुपित हुए। उन्होंने एक दूसरे के पास दूत भेजे और इस प्रकार कहलवाया - 'हे देवानुप्रिय ! हम छहों राजाओं दूत एक साथ ही (मिथिला नगरी में पहुँचे और अपमानित करके) यावत् निकाल दिये गये । अतएव हे देवानुप्रिय ! हम लोगों को कुम्भ राजा की ओर प्रयाण करना ( चढ़ाई करना) चाहिए।' इस प्रकार कहकर
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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