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________________ २६०] [ज्ञाताधर्मकथा उन्होंने एक दूसरे की बात स्वीकार की। स्वीकार करके स्नान किया (वस्त्रादि धारण किये) सन्नद्ध हुए अर्थात् कवच आदि पहनकर तैयार हुए। हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुए। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया। श्वेत चामर उन पर ढोरे जाने लगे। बड़े-बड़े घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं सहित चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर, सर्व ऋद्धि के साथ, यावत् दुंदुभि की ध्वनि के साथ अपने-अपने नगरों से निकले। निकलकर एक जगह इकट्ठे हुए। इकट्ठे होकर जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ जाने के लिए तैयार हुए। १२९-तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे बलवाउयं सदावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हयगयरहपवरजोहकलियं सेण्णं सन्नाहेह।' जाव पच्चप्पिणंति। तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने इस कथा का अर्थ जानकर अर्थात् छह राजाओं की चढ़ाई का समाचार जानकर अपने सैनिक कर्मचारी (सेनापति) को बुलाया। बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रिय! शीघ्र ही घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगी सेना तैयार करो।' यावत् सेनापति ने सेना तैयार करके आज्ञा लौटाई अर्थात् सेना तैयार हो जाने की सूचना दी। १३०-तए णं कुंभए राया ण्हाए सण्णद्धे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेयवरचामराहिं [वीइजमाणे महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव दुंदुभिनाइयरवेणं] मिहिलं रायहाणिं मझमझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता विदेहं जणवयं मझमझेणंजेणेव देसअंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खंधावारनिवेसं करेइ, करित्ता जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुझसज्जे पडिचिट्ठइ। तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने स्नान किया। कवच धारण करके सन्नद्ध हुआ। श्रेष्ठ हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुआ। कोरंट के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया। उसके ऊपर श्रेष्ठ और श्वेत चामर ढोरे जाने लगे। यावत् [विशाल घोड़ों, हाथियों, रथों एवं उत्तम योद्धाओं से युक्त] चतुरंगी सेना के साथ पूरे ठाट के साथ एवं दुंदुभिनिनाद के साथ] मिथिला राजधानी के मध्य में होकर निकला। निकलकर विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ अपने देश का अन्त (सीमा-भाग) था, वहाँ आया। आकर वहाँ पड़ाव डाला। पड़ाव डालकर जितशत्रु छहों राजाओं की प्रतीक्षा करता हुआ युद्ध के लिए सज्ज होकर ठहर गया। युद्ध प्रारम्भ १३१-तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पिय रायाणोजेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभएणं रण्णा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तत्पश्चात् वे जितशत्रु प्रभृति छहों राजा, जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आ पहुँचे। आकर कुम्भ राजा के साथ युद्ध करने में प्रवृत्त हो गये-युद्ध छिड़ गया। कुम्भ की पराजय १३२-तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभयं रायं हय-महिय-पवरवीरघाइय-निवडिय-चिंधद्धय-प्पडागं-किच्छप्पाणोवगयं दिसो दिसिं पडिसेहिति।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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