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[ज्ञाताधर्मकथा
रूप और यौवन में तथा लावण्य में जैसी उत्कृष्ट एवं उत्कृष्ट शरीर वाली है, वैसी दूसरी कोई देवकन्या वगैरह भी नहीं है। विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या के काटे हुए पैर के अंगुल के लाखवें अंश के बराबर भी तुम्हारा यह अन्त:पुर नहीं है।' इस प्रकार कह कर वह परिव्राजिका जिस दिशा से प्रकट हुई थी-आई थी, उसी दिशा में लौट गई।
१२२-तए णं जियसत्तू परिव्वाइयाजणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता जाव पहारेत्थ
गमणाए।
तत्पश्चात् परिव्राजिका के द्वारा उत्पन्न किये गये हर्ष वाले राजा जितशत्रु ने दूत को बुलाया। बुलाकर पहले के समान ही सब कहा। यावत् वह दूत मिथिला जाने के लिये रवाना हो गया।
विवेचन-इस प्रकार मल्ली कुमारी के पूर्वभव के साथी छहों राजाओं ने अपने-अपने लिए कुमारी की मँगनी करने लिए अपने-अपने दूत रवाना किये। दूतों का संदेशनिवदेन
१२३–तए णं तेसिं जियसत्तुमोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव महिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
इस प्रकार उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं के दूत,जहाँ मिथिला नगरी थी वहाँ जाने के लिए रवाना हो गये।
१२४-तएणं छप्पिय दूयगाजेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणंसि पत्तेयं पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करित्ता मिहिलं रायहाणिं अणुपविसंति। अणुपविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयंकरयल' परिग्गहियं साणं साणं राईणं वयणाई निवेदेति।
___तत्पश्चात् छहों दूत जहाँ मिथिला थी, वहाँ आये। आकर मिथिला के प्रधान उद्यान में सब ने अलग-अलग पड़ाव डाले। फिर मिथिला राजधानी में प्रवेश किया। प्रवेश करके कुम्भ राजा के पास आये। आकर प्रत्येक-प्रत्येक ने दोनों हाथ जोड़े और अपने-अपने राजाओं के वचन निवेदन किये-सन्देश कहे। (मल्ली कुमारी की माँग की)। दूतों का अपमान
__ १२५-तए णं कुंभए राया तेसिं दूयाणं अंतिए एयमढे सोच्चा आसुरुत्ते जाव [रुढे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ] तिवलियं भिउडिं णिडाले साहटु एवं वयासी-'न देमि णं अहं तुब्भं मल्लिं विदेहरायवरकन्नं' ति कटु ते छप्पि दूते असक्कारिय असंमाणिय अवहारेणं णिच्छुभावेइ। १. प्रथम अ. १८