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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
[२५७ देवाणुप्पिया! से समुद्दे ?'
'ण इणठे, समढे महालए णं से समुद्दे।'
तए णं से कूवददुरे पुरच्छिमिल्लाओ तीराओ उप्फिडित्ता णं गच्छइ, गच्छित्ता एवं वयासी-'एमहालए णं देवाणुप्पिया! से समुद्दे ?'
'णो इणढे समठे।' तहेव।
तब चोक्खा परिव्राजिका जितशत्रु राजा के इस प्रकार कहने पर थोड़ी मुस्कराई। फिर मुस्करा कर बोली-'देवानुप्रिय! इस प्रकार कहते हुए तुम उस कूप-मंडूक के समान जान पड़ते हो।'
जितशत्रु ने पूछा-'देवानुप्रिय! कौन-सा वह कूपमंडूक?'
चोक्खा बोली-'जितशत्रु! यथानामक अर्थात् कुछ भी नाम वाला एक कुएँ का मेंढक था। वह मेंढक उसी कूप में उत्पन्न हुआ था, उसी में बढ़ा था। उसने दूसरा कूप, तालाब, ह्रद, सर अथवा समुद्र देखा नहीं था। अतएव वह मानता था कि यही कूप है और यही सागर है-इसके सिवाय और कुछ भी नहीं है।
तत्पश्चात् किसी समय उस कूप में एक समुद्री मेंढक अचानक आ गया। तब कूप के मेंढक ने कहा-'देवानुप्रिय! तुम कौन हो? कहाँ से अचानक यहाँ आये हो?'
. तब समुद्र के मेंढक ने कूप के मेंढक से कहा-'देवानुप्रिय! मैं समुद्र का मेंढक हूँ।'
तब कूपमंडूक ने समुद्रमंडूक से कहा-'देवानुप्रिय! वह समुद्र कितना बड़ा है?' तब समुद्रीमंडूक ने कूपमंडूक से कहा-'देवानुप्रिय! समुद्र बहुत बड़ा है।' तब कूपमंडूक ने अपने पैर से एक लकीर खींची और कहा–'देवानुप्रिय! क्या इतना बड़ा है?' समुद्री मण्डूक बोला-'यह अर्थ समर्थ नहीं, अर्थात् समुद्र तो इससे बहुत बड़ा है।'
तब कूपमण्डूक पूर्व दिशा के किनारे से उछल कर दूर गया और फिर बोला-'देवानुप्रिय! वह समुद्र क्या इतना बड़ा है?'
समुद्री मेंढक ने कहा-'यह अर्थ समर्थ नहीं, समुद्र तो इससे भी बड़ा है। (इसी प्रकार इससे भी अधिक कूद-कूद कर कूपमण्डूक ने समुद्र की विशालता के विषय में पूछा, मगर समुद्रमण्डूक हर बार उसी प्रकार उत्तर देता गया।)
१२१–एवामेव तुमं पि जियसत्तू! अन्नेसिं वहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं भजं वा भगिणिं वा धूयं सुण्हं वा अपासमाणे जाणेसि-जारिसए मम चेव णं ओरोहे तारिसए णो अण्णस्स। तं एवं खलु जियसत्तु! मिहिलयाए नयरीए कुंभगस्स धूआ पभावईए अत्तया मल्ली नामं विदेहवररायकण्णा रूवेण य जोव्वणेण जाव [ लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा] नोखलुअण्णा काई देवकन्ना वा जारिसिया मल्ली।विदेहरायवरकण्णाए छिण्णस्स वि पायंगुटुगस्स इमे तवोरोहे सयसहस्सइमं पिकलं न अग्घइ त्ति कटु जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया।
___ 'इसी प्रकार हे जितशत्रु! दूसरे बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों यावत् सार्थवाह आदि की पत्नी, भगिनी, पुत्री अथवा पुत्रवधू तुमने देखी नहीं। इसी कारण समझते हो कि जैसा मेरा अन्त:पुर है, वैसा दूसरे का नहीं है। हे जितशत्रु! मिथिला नगरी में कुंभ राजा की पुत्री और प्रभावती की आत्मजा मल्ली नाम की कुमारी