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[ ज्ञाताधर्मकथा
तणं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी – अम्हं णं देवाप्पिया ! सोयमूल धम्मे पण्णवेमि, जं णं अम्हं किंचि असुई भवइ, तं णं उदय मट्टिया य जाव' अविग्घेणं सग्गं गच्छामो ।'
तत्र विदेहराजवरकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से पूछा - 'चोक्खा ! तुम्हारे धर्म का मूल क्या कहा गया है ? '
तब चोक्खा परिव्राजिका ने विदेहराज-वरकन्या मल्ली को उत्तर दिया- 'देवानुप्रिय ! मैं शोचमूलक धर्म का उपदेश करती हूँ। हमारे मत में जो कोई भी वस्तु अशुचि होती है, उसे जल से और मिट्टी से शुद्ध किया जाता है, यावत् [पानी से धोया जाता है, ऐसा करने से अशुचि दूर होकर शुचि हो जाती है। इस प्रकार जीव जलाभिषेक से पवित्र हो जाते हैं ।] इस धर्म का पालन करने से हम निर्विघ्न स्वर्ग जाते हैं।
११३ – तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी – ' चोक्खा ! से जहानामए केइ पुरिसे रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धोवेज्जा, अत्थि णं चोक्खा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेण धोव्वमाणस्स काई सोही ?'
'णो इट्टे समट्ठे । '
तत्पश्चात् विदेहराजकवरकन्या मल्ली ने चोक्खा परिव्राजिका से कहा - 'चोक्खा ! जैसे कोई अमुक नामधारी पुरुष रुधिर से लिप्त वस्त्र को रुधिर से ही धोवे, तो हे चोक्खा ! उस रुधिरलिप्त और रुधिर से ही धोये जाने वाले वस्त्र की कुछ शुद्धि होती है ?"
परिव्राजिका ने उत्तर दिया- 'नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं, अर्थात् ऐसा नहीं हो सकता।'
११४ – 'एवामेव चोक्खा ! तुब्भे णं पाणाइवाएणं जाव' मिच्छादंसणसल्लेणं नत्थि क ई सोही, जहा व तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं धोव्वमाणस्स ।'
मल्ली ने कहा - 'इसी प्रकार चोक्खा ! तुम्हारे मत में प्राणातिपात ( हिंसा) से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य से अर्थात् अठारह पापों के सेवन का निषेध न होने से कोई शुद्धि नहीं है, जैसे रुधिर से लिप्त और रुधिर से ही धोये जाने वाले वस्त्र की कोई शुद्धि नहीं होती । '
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११५ – तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए एवं वृत्ता समाणा संकिया कंखिया विइगिच्छिया भेयसमावण्णा जाया यावि होत्था । मल्लीए णो संचाएइ किंचिवि पामोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीया संचिट्ठा ।
तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली के ऐसा कहने पर उस चोक्खा परिव्राजिका को शंका उत्पन्न हुई, कांक्षा, (अन्य धर्म की आकांक्षा) हुई और विचिकित्सा (अपने धर्म के फल में शंका) हुई और वह भेद प्राप्त हुई अर्थात् उसके मन में तर्क-वितर्क होने लगा। वह मल्ली को कुछ भी उत्तर देने में समर्थ नहीं हो सकी, अतएव मौन रह गई ।
११६ – तए णं चोक्खं मल्लीए बहुओ दासचेडीओ हीलेंति, निंदंति, खिंसंति, गरहंति, अप्पेगइयाओ, हेरुयालंति, अप्पेगइयाओ मुहमक्कडियाओ करेंति, अप्पेगइयाओ वग्घडीओ करेंति, १. पंचम अ. ३१ २. औ. सूत्र. १६३