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आठवां अध्ययन : मल्ली]
[२५३ राजा जितशत्रु
१०९-तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जणवए, कंपिल्ले पुरे नयरे होत्था।तत्थ णं जियसत्तू णामं राया होत्था पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देविसहस्सं ओरोहे होत्था।
उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वहीं पंचाल देश का अधिपति था। उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं।
११०-तत्थंणं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया रिउव्वेयजाव [यजुव्वेय-सामवेयअहव्वणवेय-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु सुपरिणिट्ठिया ] जावि होत्था।
तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ।
मिथिला नगरी में चोक्खा (चोक्षा) नामक परिव्राजिका रहती थी। वह चोक्खा परिव्राजिका मिथिला नगरी में बहुत-से राजा, ईश्वर (ऐश्वर्यशाली धनाढ्य या युवराज) यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, और तीर्थस्नान का कथन करती, प्रज्ञापना करती, प्ररूपण करती और उपदेश करती हुई रहती थी।
१११-तएणंसाचोक्खापरिव्वाइया अन्नया कयाई तिदंडं च कुंडियं च जाव' धाउरत्ताओ य गिण्हइ, गिण्हित्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पविरलपरिव्वाइया सद्धिं संपरिवुडा मिहिलं रायहाणिं मझमझेणं जेणेव कुंभगस्सरण्णो भवणे, जेणेव कण्णंतेउरे, जेणेव मल्ली विदेहवररायकन्ना, तेणेव उवागच्छइ।उवागच्छित्ता उदयपरिफासियाए, दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए निसीयति, निसीइत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्म च जाव विहरइ।
तत्पश्चात् एक बार किसी समय वह चोक्खा परिव्राजिका त्रिदण्ड, कुंडिका यावत् धातु (गेरू) से रंगे वस्त्र लेकर परिव्राजिकाओं के मठ से बाहर निकली। निकल कर थोड़ी परिव्राजिकाओं से घिरी हुई मिथिला राजधानी के मध्य में होकर जहाँ कुम्भ राजा का भवन था, जहाँ कन्याओं का अन्तःपुर था और जहाँ विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली थी, वहाँ आई। आकर भूमि पर पानी छिड़का, उस पर डाभ बिछाया और उस पर आसन रख कर बैठी। बैठ कर विदेहवर राजकन्या मल्ली के सामने दानधर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान का उपदेश देती हुई विचरने लगी-उपदेश देने लगी।
११२-तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना चोक्खं परिवाइयं एवं वयासी-'तुब्भं णं चोक्खे! किंमूलए धम्मे पन्नत्ते?'
१. पंचम अ., ३१