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________________ २५२] [ ज्ञाताधर्मकथा १०५ - तए णं से अदीनसत्तू रायां तं चित्तगरदारयं एवं वयासी - ' किं णं तुमं देवाणुप्पिया! मल्लदिन्नेनेणं निव्विसए आणत्ते ?' तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने चित्रकारपुत्र से इस प्रकार कहा - ' तुम्हें किस कारण देश - निर्वासन की आज्ञा दी ? ' -'देवानुप्रिय ! मल्लदिन्न कुमार ने - १०६ – तए णं से चित्तयरदाइए अदीणसत्तुरायं एवं वयासी - ' एवं खलु सामी! मल्लदिने कुमारे अण्णया कयाइ चित्तगरसेणिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'तुब्भे गं देवाणुप्पिया! मम चित्तसभं तं चैव सव्व भाणियव्वं, जाव मम संडासगं छिंदावेइ, छिंदावित्ता निव्विस आणवेइ, तं एवं खलु सामी ! मल्लदित्रेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते । ' तत्पश्चात् चित्रकारपुत्र ने अदीनशत्रु राजा से कहा - 'हे स्वामिन्! मल्लदिन्न कुमार ने एक बार किसी समय चित्रकारों की श्रेणी को बुला कर इस प्रकार कहा था - 'हे देवानुप्रियो ! तुम मेरी चित्रसभा को चित्रित करो;' इत्यादि सब वृत्तान्त पूर्ववत् कहना चाहिए, यावत् कुमार ने मेरा संडासक कटवा लिया। कटवा कर देश - निर्वासन की आज्ञा दे दी। इस प्रकार हे स्वामिन्! मल्लदिन कुमार ने मुझे देश- निर्वासन की आज्ञा दी है।' १०७ – तए णं अदीणसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी -' से केरिसए णं देवाणुप्पिया ! तु मल्लीए तदाणुरूवे रूवे निव्वतिए ?' तणं से चित्तगरे कक्खंतराओ चित्तफलयं णीणेइ, णीणित्ता अदीणसत्तुस्स उवणित्ता एवं वयासी—'एस णं सामी ! मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवस्स रूवस्स केइ आगारभाव-पडोयारे निव्वत्तिए, णो खलु सक्का केणइ देवेण वा जाव [ दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा ] मल्लीए विदेहरायवरकन्नगाए तयाणुरूवे रूवे निव्वेत्तित्तए । ' तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने उस चित्रकार से इस प्रकार कहा- - देवानुप्रिय ! तुमने मल्ली कुमारी का उसके अनुरूप चित्र कैसा बनाया था ? तब चित्रकार ने अपनी काँख में से चित्रफलक निकाला। निकाल कर अदीनशत्रु राजा के पास रख दिया और रख कर कहा - 'हे स्वामिन्! विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली का उसी के अनुरूप यह चित्र मैंने कुछ आकार, भाव और प्रतिबिम्ब के रूप में चित्रित किया है। विदेहराज की श्रेष्ठ कुमारी मल्ली का हूबहू रूप तो कोई देव, [यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग तथा गंधर्व ] भी चित्रित नहीं कर सकता। १०८ - तए णं अदीणसत्तू राया पडिरूवजणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी — तहेव जाव पहारेत्थ गमणाए । - तत्पश्चात् चित्र को देखकर हर्ष उत्पन्न होने के कारण अदीनशत्रु राजा ने दूत को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – (अपने लिए मल्ली कुमारी की मँगनी करने के लिए दूत भेजा ) इत्यादि सब वृत्तान्त पूर्ववत् कहना चाहिए। यावत् दूत मिथिला जाने के लिए रवाना हो गया ।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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