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________________ २४६] [ज्ञाताधर्मकथा कुण्डलयुगल बना दें।' ९०-तए णं से कुंभए राया तीसे सुवण्णगारसेणीए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते तिवलियं भिउडिं निडाले साहटु एवं वयासी _ 'केस णं तुब्भे कलायणं भवइ ? जे णं तुब्भे इमस्स कुडंलजुयलस्स नो संचाएह संधिं संघाडेत्तए?' ते सुवण्णगारे निव्विसए आणवेइ। सुवर्णकारों का कथन सुन कर और हृदयंगम करके कुम्भ राजा क्रुद्ध हो गया। ललाट पर तीन सलवट डाल कर इस प्रकार कहने लगा-'अरे! तुम कैसे सुनार हो जो इस कुण्डलयुगल का जोड़ भी सांध नहीं सकते? अर्थात् तुम लोग बड़े मूर्ख हो।' ऐसा कहकर उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी। ९१-तए णं ते सुवण्णगारा कुंभेणं रण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा जेणेव साइं साइं गिहाइं तेणव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाए रायहाणीए मज्झमझेणं निक्खमंति। निक्खमित्ता विदेहस्स जणवयस्स मझमझेणं जेणेव कासी जणवए, जेणेव वाणारसीनयरीतेणेव उवागच्छंति।उवागच्छित्ता अग्गजाणंसिसगडीसागडं मोएंति.मोइत्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हंति, गेण्हित्ता वाणारसीए नयरीए मझमझेणं जेणेव संखे कासीराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल० जाव वद्धाति, वद्धावित्ता पाहुडं पुरओ ठावेंति, ठावित्ता संखरायं एवं वयासी तत्पश्चात् कुम्भ राजा द्वारा देशनिर्वासन की आज्ञा पाये हुए वे सुवर्णकार अपने-अपने घर आये। आकर अपने भांड, पात्र और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी के बीचोंबीच होकर निकले। निकल कर विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ काशी जनपद था और जहाँ वाणारसी नगरी थी, वहाँ आये। वहाँ आकर अग्र (उत्तम) उद्यान में गाड़ी-गाड़े छोड़े। छोड़ कर महान् अर्थ वाले राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार लेकर, वाणारसी नगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ काशीराज शंख था वहाँ आये। आकर दोनों हाथ जोड़ कर यावत् जय-विजय शब्दों से वधाया। वधाकर वह उपहार राजा के सामने रखा। रख कर शंख राजा से इस प्रकार निवेदन किया ९२–'अम्हे णं सामी! मिहिलाओ नयरीओ कुंभएणंरण्णा निव्विसया आणत्ता समाणा इहं हव्वमागया, तंइच्छामो णं सामी! तुब्भं बाहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुव्विग्गा सुहं सुहेणं परिवसिउं।' तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी-'किंणं तुब्भे देवाणुप्पिया! कुंभएणं रण्णा निव्विसया आणत्ता?' तए णं ते सुवण्णगारा संखं एवं वयासी-‘एवं खलु सामी! कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए सुवण्णगारसेणिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता जाव निव्विसया आणत्ता ।' 'हे स्वामिन् ! राजा कुम्भ के द्वारा मिथिला नगरी से निर्वासित हुए हम सीधे यहाँ आये हैं। हे स्वामिन् ! हम आपकी भुजाओं की छाया ग्रहण किये हुए अर्थात् आपके संरक्षण में रह कर निर्भय और
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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