________________
आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
[२४३ उस काल और उस समय में कुणाल नामक जनपद था। उस जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी थी। उसमें कुणाल देश का अधिपति रुक्मि नामक राजा था। रुक्मि राजा की पुत्री और धारिणीदेवी की पूख से जन्मी सुबाहु नामक कन्या थी। उसके हाथ-पैर आदि अवयव सुन्दर थे। वय, रूप, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। उस सुबाहु बालिका का किसी समय चातुर्मासिक स्नान (जलक्रीड़ा) का उत्सव आया।
८०–तए णं से रुप्पी कुणालाहिबई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासियमजणयं उवट्ठिय जाणइ, जाणित्ता कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'एवं खलु देवाणुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लंचाउम्मासियमज्जणए भविस्सइ, तंकल्लं तुब्भेणं रायमग्गमोगाढंसिचउक्वंसि (पुष्फमंडवंसि) जलथलयदसद्धवण्णमल्लं साहरेह, जाव [एगं महं सिरिदामगंडं गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह।' तेवि तहेव] ओलइंति।
तब कुणालाधिपति रुक्मिराजा ने सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया जाना। जानकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा–'हे देवानुप्रियो! कल सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव होगा। अतएव तुम राजमार्ग के मध्य में, चौक में (पुष्प-मण्डप में) जल और थल में उत्पन्न होने वाले पाँच वर्गों के फूल लाओ और एक सुगंध छोड़ने वाला श्रीदामकाण्ड (सुशोभित मालाओं का समूह) छत में लटकाओ।' यह आज्ञा सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार कार्य किया।
८१–तए णं रुप्पी कुणालाहिवई सुवनगारसेणिं सदावेइ, सहावित्ता एवं वयासी'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायमग्गमोगाढंसि पुष्फमंडवंसि णाणाविहपंचवण्णेहिं तंदुलेहिंणगरं आलिहह। तस्स बहुमज्झदेसभाए पट्टयं रएह।' रइत्ता पच्चप्पिणंति।
___ तत्पश्चात् कुणाल देश के अधिपति रुक्मिराजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाया। उसे बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही राजमार्ग के मध्य में, पुष्पमंडप में विविध प्रकार के पंचरंगे चावलों से नगर का आलेखन करो-नगर का चित्रण करो। उसके ठीक मध्य भाग में एक पाट (बाजौठ) रखो।' यह सुनकर उन्होंने इसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापस लौटाई।
८२-तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई हत्थिखंधवरगए चाउरंगिणीए सेणाए महया भडचडकर-रह-पहकरविंद-परिक्खित्ते अंतेउरपरियालसंपरिवुडे सुबाहुंदारियं पुरओ कट्ट जेणेव रायमग्गे, जेणेव पुष्फमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पुष्फमंडवं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तत्पश्चात् कुणालाधिपति रुक्मि हाथी के श्रेष्ठ स्कन्ध पर आरूढ हुआ। चतुरंगी सेना, बड़े-बड़े योद्धाओं और अंतःपुर के परिवार आदि से परिवृत होकर सुबाहु कुमारी को आगे करके, जहाँ राजमार्ग था और जहाँ पुष्पमंडप था, वहाँ आया। आकर हाथी के स्कन्ध से नीचे उतरा। उतर कर पुप्पमंडप में प्रवेश किया। प्रवेश करके पूर्व दिशा की ओर मुख करके उत्तम सिंहासन पर आसीन हुआ।
८३-तओणं ताओ अंतंउरियाओ सुबाहुंदारियं पट्टयंसि दुरूहेंति।दुरूहित्ता सेयपीयएहिं कलसेहिं ण्हाणेति, ण्हाणित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेंति, करित्ता पिउणो पायं वंदिउं उवणेति।