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[ज्ञाताधर्मकथा भी आश्चर्य देखा है?'
७७-तए णं ते अरहन्नगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी-'एवं खलु सामी! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहनगपामोक्खा बहवे संजत्तगा णावावाणियगा परिवसामो, तए णं अम्हे अन्नया कयाइं गणिमंच धरिमं च मेजं च परिच्छेजं च तहेव अहीणमतिरित्तं जाव कुंभगस्स रण्णो उवणेमो। तए णं कुंभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता पडिविसजेइ। तं एस णं सामी! अम्हेहिं कुभंरायभवणंसि मल्ली विदेहरायवरकन्ना अच्छेरए दिढे तं नो खलु अन्ना का वि तारिसिया देवकन्ना वा जाव [असुरकन्ना वा नागकन्ना वा जक्खकन्ना वा गंधव्वकन्ना वा रायकन्ना वा] जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना।'
तब उन अहेन्नक आदि वणिकों ने चन्द्रच्छाय नामक अङ्गदेश के राजा से इस प्रकार कहा-हे स्वामिन् ! हम अर्हन्नक आदि बहुत-से सांयात्रिक नौकावणिक् इसी चम्पानगरी में निवास करते हैं। एक बार किसी समय हम गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड भर कर-इत्यादि सब पहले की भांति ही न्यूनताअधिकता के बिना कहना-यावत् कुम्भ राजा के पास पहुँचे और भेंट उसके सामने रखी। उस समय कुम्भ राजा ने मल्लीनामक विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या को वह दिव्य कुंडलयुगल पहनाया। पहना कर उसे विदा कर दिया। तो हे स्वामिन् ! हमने कुम्भ राजा के भवन में विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या मल्ली आश्चर्य रूप में देखी है। मल्ली नामक विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या जैसी सुन्दर है, वैसी दूसरी कोई देवकन्या, असुरकन्या, नागकन्या, यक्षकन्या, गंधर्वकन्या या राजकन्या नहीं है।
७८-तएणं चंदच्छाए ते अरहन्नगपामोक्खे सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं चंदच्छाए वाणियगजणियहासे दूतं सदावेइ, जाव' जइ वि य णं सा सयं रजसुक्का। तए णं से दूते हढे जाव पहारेत्थ गमणाए।
____ तत्पश्चात् चन्द्रन्छाय राजा ने अर्हन्नक आदि का सत्कार-सम्मान किया। सत्कार-सम्मान करके विदा किया। तदनन्तर वणिकों के कथन से चन्द्रच्छाय को अत्यन्त हर्ष (अनुराग) हुआ। उसने दूत को बुलाकर कहा-इत्यादि कथन सब पहले के समान ही कहना-अर्थात् राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो। भले ही वह कन्या मेरे सारे राज्य के मूल्य की हो, तो भी स्वीकार करना। दूत हर्षित होकर मल्ली कुमारी की मंगनी के लिए चल दिया। राजा रुक्मि
७९-तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जणवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणलाहिवई नामं राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहुनामं दारिया होत्था, सुकुमाल० रूवेण य जोव्वणेणं लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। तीसे णं सुबाहूए दारियाए अन्नया चाउम्मासियमजणए जाए यावि होत्था।
१. अ. अ. सूत्र ५०-५१