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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली ] पिणद्धइ, पिणद्धित्ता पडिविसज्जेइ । तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने उन नौकावणिकों की वह बहुमूल्य भेंट यावत् अंगीकार की। अंगीकार करके विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली को बुलाया। बुलाकर वह दिव्य कुंडलयुगल विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली को पहनाया । पहनाकर उसे विदा कर दिया । [ २४१ ७४ – तए णं कुंभए राया ते अरहन्नगपामोक्खे जाव वाणियगे विपुलेणं असण-पाणखाइम - साइमेण वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं जाव [ सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारित्ता सम्माणित्ता ] उस्सुक्कं वियरेइ, वियरित्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ । तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने उन अर्हन्नक आदि नौकावणिकों का विपुल अशन आदि से तथा वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकार से सत्कार किया। उनका शुल्क माफ कर दिया । राजमार्ग पर उनको उतारा - आवास दिया और फिर उन्हें विदा किया। ७५–तए णं अरहन्नगसंजत्तगा जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भंडववहरणं करेंति, करित्ता पडिभंडं गेण्हंति, गेण्हित्ता सगडिसागडं भरेंति, जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयवहणं सज्जेंति, सज्जित्ता भंडं संकामेंति, दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव चंपाए पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोयं लंबेंति, लंबित्ता सगडिसागडं सज्जेंति, सज्जित्ता तं गणिमं धरिमं मेज्जं पारिच्छेज्जं सगडीसागडं संकामेंति, कामेत्ता जाव' महत्थं पाहुडं दिव्वं च कुंडलजुयलं गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव' उवणेंति । तत्पश्चात् वे अर्हन्नक आदि सांयात्रिक वणिक्, जहाँ राजमार्ग पर आवास था, वहाँ आये। आकर भाण्ड का व्यापार करने लगे । व्यापार करके उन्होंने प्रतिभांड (सौदे के बदले में दूसरा सौदा ) खरीदा। खरीद कर उससे गाड़ी - गाड़े भरे । भरकर जहाँ गम्भीर पोतपट्टन था, वहाँ आये। आकर के पोतवहन सजाया - तैयार किया। तैयार करके उसमें सब भांड भरा। भरकर दक्षिण दिशा के अनुकूल वायु के कारण जहाँ चम्पा नगरी का पोतस्थान (बन्दरगाह) था, वहाँ आये। आकर पोत को रोककर गाड़ी-गाड़े ठीक करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य - चार प्रकार का भांड उनमें भरा। भरकर यावत् बहुमूल्य भेंट और दिव्य कुण्डलयुगल ग्रहण किया। ग्रहण करके जहाँ अंगराज चन्द्रच्छाय था, वहां आये । आकर वह बहुमूल्य भेंट राजा के सामने रखी। ७६ –तए णं चंदच्छाए अंगराया तं दिव्वं महत्थं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता ते अरहन्नगपामोक्खे एवं वयासी - 'तुब्भे णं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर० जाव सन्निवेसाई आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं अभिक्खणं पोयवहणेहिं ओगाहेह, तं अत्थियाइं भे इ कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे ?' तत्पश्चात् चन्द्रच्छाय अंगराज ने उस दिव्य एवं महामूल्यवान् कुण्डलयुगल (आदि) को स्वीकार किया। स्वीकार करके उन अर्हन्त्रक आदि से इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो ! आप बहुत से ग्रामों, आकरों आदि में भ्रमण करते हो तथा बार-बार लवणसमुद्र में जहाज द्वारा प्रवेश करते हो तो आपने किसी जगह कोई १- २. अ. अ. सूत्र ७२
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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