SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४] [ज्ञाताधर्मकथा दिखाई दिया। देवताओ णच्चंति, एगं च णं महं पिसायरूवं पासंति। अकाल में गर्जना होने लगी, अकाल में बिजली चमकने लगी, अकाल में मेघों की गंभीर गड़गड़ाहट होने लगी। बार-बार आकाश में देवता (मेघ) नृत्य करने लगे। इसके अतिरिक्त एक ताड़ जैसे पिशाच का रूप दिखाई दिया। ६२-तालजंघं दिवंगयाहिं बाहाहिं मसिमूसगमहिसकालगं, भरिय-मेहवन्न, लंबोळं, निग्गयग्गदंतं, निल्लालियजमलजुयलजीहं, आऊसिय-वयणगंडदेसं, चीणचिपिटनासियं, विगयभुग्गभुग्गभुमयं, खज्जोयग-दित्तचक्खुरागं, उत्तासणगं, विसालवच्छं, विसालकुच्छि, पलंबकुच्छि, पहसियपयलिय-पयडियगत्तं, पणच्चमाणं, अप्फोडतं, अभिवयंतं, अभिगजंतं, बहुसो बहुसो अट्टहासे विणिम्मयंतं नीलुप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासंखुरधारं असिंगहाय अभिमुहमावयमाणं पासंति। वह पिशाच ताड़ के समान लंबी जांघों वाला था और उसकी बाहुएँ आकाश तक पहुँची हुई थीं। वह कज्जल, काले चूहे और भैंसे के समान काला था। उसका वर्ण जलभरे मेघ के समान था। उसके होठ लम्बे थे और दांतों के अग्रभाग मुख से बाहर निकले थे। उसने अपनी एक-सी दो जीभे मुँह से बाहर निकाल रक्खी थीं। उसके गाल मुँह में फँसे हुए थे। उसकी नाक छोटी और चपटी थी। भृकुटि डरावनी और अत्यन्त वक्र थी। नेत्रों का वर्ण जुगनू के समान चमकता हुआ लाल था। देखने वाले को घोर त्रास पहुंचाने वाला था। उसकी छाती चौड़ी थी, कुक्षि विशाल और लम्बी थी। हँसते और चलते समय उसके अवयव ढीले दिखाई देते थे। वह नाच रहा था, आकाश को मानो फोड़ रहा था, सामने आ रहा था, गर्जना कर रहा था और बहुत-बहुत ठहाके मार रहा था। ऐसे काले कमल, भैंस के सींग, नील, अलसी के फूल के समान काली तथा छुरे की धार. की तरह तीक्ष्ण तलवार लेकर आते हुए पिशाच को उन वणिकों ने देखा। ६३-तए णं ते अरहण्णगवजा संजत्ताणावावाणियगा एगं च णं महं तालपिसायं पासंति-तालजंघ, दिवं गयाहिं बाहाहिं, फुट्टसिरं भमर-णिगर-वरमासरासिमहिसकालगं, भरियमेहवण्णं, सुप्पणहं, फालसरिसजीहं, लंबोठं धवल-वट्ट-असिलिट्ठ-तिक्ख-थिर-पीणकुडिल-दाढोवगूढवयणं, विकोसिय-धारासिजुयल-समसरिस-तणुयचंचल-गलंतरसलोलचवल-फुरुफुरंत-निल्लालियग्गजीहंअवयत्थिय-महल्ल-विगय-वीभच्छ-लालपगलंत-रत्ततालुय हिंगुलुय-संगब्भकंदरबिलं व अंजणगिरिस्स, अग्गिजालुग्गिलंतवयणं आऊसिय-अक्खचम्मउइट्ठगंडदेसं चीण-चिविड-वंक-भग्गणासं, रोसागय-धम-धमेन्त-मारुय-निठुर-खरफरुसझुसिरं, ओभुग्गणासियपुडं घाडुब्भड-रइय-भीसणमुहं, उद्धमुहकन्नसक्कुलिय-महंतविगय-लोम-संखालग-लंबंत-चलियकन्नं, पिंगलदिप्पंतलोयणं, भिउडितडियनिडालं नरसिरमाल-परिणद्धचिंद्धं, विचित्तगोणससुबद्धपरिकरं अवहोलंत-पुप्फुयायंत-सप्पविच्छुय-गोधुंदर, नउलसरड-विरइयविचित्तवेयच्छमालियागं, भोगकूर-कण्हसप्पधमधमेंतलंबन्तकन्नपूरं, मजारसियाल-लइयखंधं, दित्तघुघुयंतघूयकयकुंतलसिरं, घंटारवेण भीमं, भयंकरं, कायरजणहिययफोडणं, दित्तमट्टट्टहासं विणिम्मुयंतं, वसा-रुहिर-पूय-मंस-मलमलिणपोच्चडतणुं, उत्तासणयं,
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy