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[ज्ञाताधर्मकथा करने के साथ) पारणा करे, पारणा करके दो उपवास करे, फिर एक उपवास करे, करके तीन उपवास (अष्टमभक्त) करे, करके दो उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके नौ उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके नौ उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके दो उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके एक उपवास करे, करके दो उपवास करे, करके एक उपवास करे। सब जगह पारणा के दिन सर्वकामगुणित पारणा करके उपवासों का पारणा समझना चाहिए।
विवेचन-सिंह की क्रीडा के समान तप सिंहनिष्क्रीडित कहलाता है। जैसे सिंह चलता-चलता पीछे देखता है, इसी प्रकार जिस तप में पीछे के तप की आवृत्ति करके आगे का तप किया जाता है और इसी क्रम से आगे बढ़ा जाता है, वह सिंहनिष्क्रीडित तप कहलाता है। इस तप की स्थापना अंकों में निम्न प्रकार है
१७–एवं खलु एसा खुड्डागसीहनिक्कीलियस्स तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी छहिं मासेहिं सत्तहि य अहोरत्तेहिय अहासुत्ता जाव आराहिया भवइ।
___इस प्रकार इस क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीडित तप की पहली परिपाटी छह मास और सात अहोरात्रों में सूत्र के अनुसार यावत् आराधित होती है। (इसमें १५४ उपवास और तेतीस पारणा किये जाते हैं।)
१८-तयाणंतरं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेंति, नवरं विगइवजं पारेंति। एवं तच्चा वि परिवाडी, नवरं पारणए अलेवाडं पारेंति। एवं चउत्था वि परिवाडी, नवरं पारणए आयंबिलेणं पारेंति।
तत्पश्चात् दूसरी परिपाटी में एक उपवास करते हैं, इत्यादि सब पहले के समान ही समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि इसमें विकृति रहित पारणा करते हैं, अर्थात् पारणा में घी, तेल, दूध, दही आदि विगय का सेवन नहीं करते। इसी प्रकार तीसरी परिपाटी में भी समझना चाहिए। इसमें विशेषता यह है कि अलेपकृत (अलेपमिश्रित) से पारणा करते हैं। चौथी परिपाटी में भी ऐसा ही करते हैं किन्तु उसमें आयंबिल से पारणा की जाती है।
१९-तए णं महब्बलपामोक्खा सत्तअणगारा खुड्डागंसीहनिक्कीलियं तवोकम्मं दोहिं संवच्छरेहिं अट्ठावीसाए अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव' आणाए आराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदन्ति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
१. प्र. अ. १९६