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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
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करना (८) बारंबार ज्ञान का उपयोग करना (९) दर्शन-सम्यक्त्व की विशुद्धता (१०) ज्ञानादिक का विनय करना (११) छह आवश्यक करना (१२) उत्तरगुणों और मूलगुणों का निरतिचार पालन करना (१३) क्षणलव अर्थात् क्षण-एक लव प्रमाण काल में भी संवेग, भावना एवं ध्यान का सेवन करना (१४) तप करना (१५) त्याग-मुनियों को उचित दान देना (१६) नया-नया ज्ञान ग्रहण करना (१७) समाधि-गुरु आदि को साता उपजाना (१८) वैयावृत्य करना (१९) श्रुत की भक्ति करना और (२०) प्रवचन की प्रभावना करना, इन बीस कारणों से जीव तीर्थंकरत्व की प्राप्ति करता है। तात्पर्य यह है कि इन बीस कारणों से महाबल मुनि ने तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया। महाबल आदि की तपस्या
१५-तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा मासिअंभिक्खुपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरंति, जाव' एगराइअंभिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति।
तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार एक मास की पहली भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। यावत् बारहवीं एकरात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। (यहां यावत् शब्द से बीच की दस भिक्षु-प्रतिमाएँ.इस प्रकार समझनी चाहिए-दूसरी दो मास की, तीसरी तीन मास की, चौथी चार मास की, पाँचवीं पाँच मास की, छठी छह मास की, सातवीं सात मास की, आठवीं आठ अहोरात्र की, नौवीं सात अहोरात्र की, दसवीं सात अहोरात्र की और ग्यारहवीं एक अहोरात्र की। इस प्रकार सब मिलकर बारह भिक्षु-प्रतिमाएँ हैं।)
___१६-तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहानिक्कीलियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तंजहा-चउत्थं करेंति, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेंति, पारित्ता छटुं करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता छटुं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता चाउद्दसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता चोद्दसमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता वीसइमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमं करेंति, करित्ता वीसइमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमं करेंति, करित्ता चोद्दसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता चाउद्दसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता छठेंकरेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता छटुं करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति। सव्वत्थ सव्वकामगुणिएणं पारेंति।
तत्पश्चात् वे महाबल प्रभृति सातों अनगार क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीडित नामक तपश्चरण अंगीकार करके विचरने लगे। वह तप इस प्रकार किया जाता है
सर्वप्रथम एक उपवास करे, उपवास करके सर्वकामगुणित (विगय आदि सभी पदार्थों को ग्रहण
१. प्र. अ. १९६-९७