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आठवाँ अध्ययन : मल्ली ]
परिषद वंदना करने के लिए निकली। महाबल राजा भी निकला । स्थविर महाराज ने धर्म कहाधर्मोपदेश दिया। महाबल राजा को धर्म श्रवण करके वैराग्य उत्पन्न हुआ । विशेष यह कि राजा ने कहा- 'हे देवानुप्रिय ! मैं अपने छहों बालमित्रों से पूछ लेता हूँ और बलभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित कर देता हूँ, फिर दीक्षा अंगीकार करूँगा ।' यावत् इस प्रकार कहकर उसने छहों बालमित्रों से पूछा ।
तब वे छहों बाल-मित्र महाबल राजा से कहने लगे - देवानुप्रिय ! यदि तुम प्रव्रजित होते हो तो हमारे लिए अन्य कौन-सा आधार है ? यावत् अथवा आलम्बन है, हम भी दीक्षित होते हैं।
तत्पश्चात् महाबल राजा ने उन छहों बालमित्रों से कहा- - देवानुप्रियो ! यदि तुम मेरे साथ [ यावत् ] प्रव्रजित होते हो तो तुम जाओ और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपने-अपने राज्य पर प्रतिष्ठित करो और फिर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ़ होकर यहाँ प्रकट होओ।' तब छहों बालमित्र गये और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्यासीन करके यावत् महाबल राजा के समीप आ गये ।
१० - तए णं से महब्बले राया छप्पिय बालवयंसए पाउब्भूए पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे संद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी – 'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! बलभद्दस्स कुमारस्स महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचेह ।' ते वि तहेव जाव बलभद्दं कुमारं अभिसिंचेंति । तब महाबल राजा ने छहों बालमित्रों को आया देखा । देखकर यह हर्षित और संतुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर कहा-' - 'देवानुप्रियो ! जाओ और बलभद्र कुमार का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक करो'। यह आदेश सुनकर उन्होंने उसी प्रकार किया यावत् बलभद्र कुमार का अभिषेक किया। ११- तए णं से महब्बले राया बलभद्दं कुमारं आपुच्छइ । तओ णं महब्बलपामोक्खा छप्पिय बालवयंसए सद्धिं पुरिससहस्सवाहिणिं सिवियं दुरूढा वीयसोयाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छंति । णिग्गच्छित्ता जेणेव इंदकुंभे उज्जाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति । उवागच्छिता ते वि य सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेंति, करिता जाव पव्वयंति, एक्कारस अंगाई अहिजित्ता बहूहिं चउत्थछट्ठट्ठमेहिं अप्पाणं भावेमाणा जाव विहरंति ।
तत्पश्चात् महाबल राजा ने बलभद्र कुमार से, जो अब राजा हो गया था, दीक्षा की आज्ञा ली। फि महाबल अचल आदि छहों बालमित्रों के साथ हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविका पर आरूढ़ होकर, वीतशोका नगरी के बीचोंबीच होकर निकले। निकल कर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था और जहाँ स्थविर भगवन्त थे, वहां आये। आकर उन्होंने भी स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। लोच करके यावत् दीक्षित हुए। ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, बहुत से उपवास, बेला, तेला आदि तप से आत्मा को भवित करते हुए विचरने लगे । १२ – तए णं तेसिं महब्बलपामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था - 'जं णं अम्हं देवाणुप्पिया ! एगे तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरड़, तं णं अम्हेहिं सव्वेहिं सद्धिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए ' त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स एयमट्टं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता बहूहिं चउत्थ जाव [ छट्ठट्ठम-दसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं . ] विहरंति ।
तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार किसी समय इकट्ठे हुए। उस समय उनमें परस्पर इस