SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४] [ज्ञाताधर्मकथा ८-तस्स णं महब्बलस्स रन्नो इमे छप्पिय बालवयंसगा रायाणो होत्था, तंजहा(१)अयले(२) धरणे (३) पूरणे(४) वसू(५)वेसमणे(६)अभिचंदे, सहजाया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अण्णमण्णमणुरत्ता अण्णमण्णमणुव्वयया अण्णमण्णच्छंदाणुवत्तया अण्णमण्णहियइच्छियकारया अण्णमण्णेसु रजेसु किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरंति। __तए णं तेसिं रायाणं अण्णया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सणिविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पजित्था-जण्णं देवाणुप्पिया ! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पजइ, तण्णं अम्हेहिं एगयओ समेच्चा णित्थरियव्वे त्ति कटु अन्नमन्नस्सेयमट्ठ पडिसुणेति। सुहंसुहेणं विहरंति। __उस महाबल राजा के छह राजा बालमित्र थे। वे इस प्रकार- (१) अचल (२) धरण (३) पूरण (४) वसु (५) वैश्रमण (६) अभिचन्द्र । वे साथ ही जन्मे थे, साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए थे, साथ ही धूल में खेले थे, साथ ही विवाहित हुए थे, एक-दूसरे पर अनुराग रखते थे, एक-दूसरे का अनुसरण करते थे, एकदूसरे के अभिप्राय का आदर करते थे, एक-दूसरे के हृदय की अभिलाषा के अनुसार कार्य करते थे, एक-दूसरे के राज्यों में काम-काज करते हुए रह रहे थे। एक बार किसी समय वे सब राजा इकट्ठे हुए, एक जगह मिले, एक स्थान पर आसीन हुए। तब उनमें इस प्रकार का वार्तालाप हुआ–'देवानुप्रियो ! जब कभी हमारे लिए सुख का, दुःख का, प्रव्रज्या-दीक्षा का अथवा विदेशगमन का प्रसंग उपस्थित हो तो हमें सभी अवसरों पर साथ ही रहना चाहिए। साथ ही आत्मा का निस्तार करना-आत्मा को संसार सागर से तारना चाहिए, ऐसा निर्णय करके परस्पर में इस अर्थ (बात) को अंगीकार किया था। वे सुखपूर्वक रह रहे थे। महाबल की दीक्षा ९-तेणं कालेणं तेण समएणं धम्मघोसा थेरा जेणेव इंदकुंभे उजाणे तेणेव समोसढा, परिसा निग्गया, महब्बलो वि राया निग्गओ।धम्मो कहिओ।महब्बलेणं धम्म सोच्चा-जं नवरं देवाणुप्पिया! छप्पिय बालवयंसगे आपुच्छामि, बलभदं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव छप्पिय बालवयंसए आपुच्छइ। तए णं ते छप्पिय बालवयंसए महब्बलं रायं एवं वयासी-'जइ णं देवाणुप्पिया! तुब्भे पव्वयह, अम्हं के अन्ने आहारे वा? जाव आलंबे वा? अम्हे वि य णं पव्वयामो।' तएणं से महब्बले राया छप्पिय बालवयंसए एवं वयासी-'जइणं देवाणुप्पिया! तुब्भे मए सद्धिं (जाव) पव्वयह, तओ णं तुब्भे गच्छह, जेट्टपुत्तं सएहिं सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्सवाहणीओ सीयाओ दुरुढा समाणा पाउब्भवह। तए णं ते छप्पिय बालवयंसए जाव पाउब्भवंति। उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था, वहाँ पधारे।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy