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आठवाँ अध्ययन : मल्ली]
[२१३ महब्बले नाम दारए जाए, उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे। तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरीपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नासयाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति।पंच पासायसया पंचसओ दाओ जाव' विहरइ।
वह धारिणी देवी किसी समय स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई। यावत् यथासमय महाबल नामक पुत्र का जन्म हुआ। वह बालक क्रमशः बाल्यावस्था को पार कर भोग भोगने में समर्थ हो गया। तब माता-पिता ने समान रूप एवं वय वाली कमलश्री आदि पांच सौ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ, एक ही दिन में महाबल का पाणिग्रहण कराया। पाँच सौ प्रासाद आदि पाँच-पाँच सौ का दहेज दिया। यावत् महाबल कुमार मनुष्य संबन्धी कामभोग भोगता हुआ रहने लगा।
५-तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा नाम थेरा पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव इंदकुंभे नाम उज्जाणे तेणेव समोसढे, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरंति।
उस काल और उस समय में धर्मघोषनामक स्थविर पाँच सौ शिष्यों-अनगारों से परिवृत होकर अनुक्रम से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम गमन करते हुए, सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ इन्द्रकुम्भ नामक उद्यान था, वहाँ पधारे और संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ ठहरे। बल की दीक्षा और निर्वाण
६-परिसा निग्गया, बलो वि राया निग्गओ, धम्म सोच्चा णिसम्म जं नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेइ, ठावित्ता सयमेव बले राया थेराणं अंतिए पव्वइए, एक्कारसअंगविओ, बहूणि वासाणि सामण्णपरियायं पाउणित्ता जेणेव चारुपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मासिएणं भत्तेणं अपाणेणं केवलं पाउणित्ता जाव सिद्धे।
स्थाविर मुनिराज को वन्दना करने के लिए जनसमूह निकला। बल राजा भी निकला। धर्म सुनकर राजा को वैराग्य उत्पन्न हुआ। विशेष यह कि उसने महाबल कुमार को राज्य पर प्रतिष्ठित किया। प्रतिष्ठित करके स्वयं ही बल राजा ने आकर स्थविर के निकट प्रव्रज्या अंगीकार की। वह ग्यारह अंगों के वेत्ता हुए। बहुत वर्षों तक संयम पाल कर जहाँ चारुपर्वत था, वहाँ गये। एक मास का निर्जल अनशन करके केवलज्ञान प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए। राजा महाबल
७-तए णं सा कमलसिरी अन्नया कयाइ सीहं सुमिणे पासिता णं पडिबुद्धा, जाव बलभद्दो कुमारो जाओ, जुवराया यावि होत्था।
तत्पश्चात् अन्यदा कदाचित् कमलश्री स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई (यथा समय) बलभद्र कुमार का जन्म हुआ। वह युवराज भी हो गया।
१. प्र. अ. सूत्र १०२-१०७