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पञ्चम अध्ययन : शैलक]
[१८३ तत्पश्चात् मंडुक राजा ने दुबारा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'शीघ्र ही शैलक महाराजा के महान् अर्थ वाले (बहुव्ययसाध्य) यावत् दीक्षाभिषेक की तैयारी करो।' जिस प्रकार मेघकुमार के प्रकरण में प्रथम अध्ययन में कहा था, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि पद्मावती देवी ने शैलक के अग्रकेश ग्रहण किये। सभी दीक्षार्थी प्रतिग्रह-पात्र आदि ग्रहण करके शिविका पर आरूढ़ हुए। शेष वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। यावत् राजर्षि शैलक ने दीक्षित होकर सामायिक से आरम्भ करके ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। अध्ययन करके बहुत से उपवास [बेला, तेला, चौला, पंचोला, अर्धमासखमण, मासखमण आदि तपश्चरण करते हुए] विचरने लगे। शैलक का जनपदविहार
५८-तए णं से सुए सेलयस्स अणगारस्स ताई पंथयपामोक्खाइं पंच अणगारसयाई सीसत्ताए वियरइ।
तए णं से सुए अन्नया कयाई सेलगपुराओ नगराओ सुभूमिभागाओ उजाणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।
तएणं से सुए अणगारे अन्नया कयाइं तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं विहरमाणे जेणेव पुंडरीए पव्वए जाव (तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं सणियं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेघघणसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ,पडिलेहित्ताजाव संलेहणा-झूसणाझूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए पाओवगमणंणुवन्ने।
तएणं से सुए बहूणि वासाणि सामण्णपरियागंपाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धे (बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।)
तत्पश्चात् शुक अनगार ने शैलक अनगार को पंथक प्रभृति पाँच सौ अनगार शिष्य रूप में प्रदान किये।
____फिर शुक मुनि किसी समय शैलकपुर नगर से और सुभूमिभाग उद्यान से बाहर निकले। निकलकर जनपदों में विचरने लगे।
तत्पश्चात् वह शुक अनगार एक बार किसी समय एक हजार अनगारों के साथ अनुक्रम से विचरते हुए, ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना अन्तिम समय समीप आया जानकर पुंडरीक पर्वत पर पधारे। यावत् [पुंडरीक पर्वत पर पधारकर धीरे-धीरे उस पर आरूढ़ हुए। सघन मेघों के समान कृष्णवर्ण और देवगण जहाँ उतरते हैं ऐसे पृथ्वी-शिलापट्टक का प्रतिलेखन किया यावत् संलेखनापूर्वक आहार-पानी का परित्याग करके, एक मास की संलेखना से आत्मा को भावित करके साठ भक्तों को छेदन करके केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त करके सिद्ध (बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत्त और समस्त दुःखों से रहित) हो गये। शैलक मुनि की रुग्णता
५९-तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहि अंतेहि य, पतेहि य, तुच्छेहि य, लूहेहि य अरसेहि य, विरसेहि य, सीएहि य, उण्हेहि य, कालाइक्वंतेहि य, पमाणाइक्वंतेहि य, णिच्चं