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________________ १८२] [ज्ञाताधर्मकथा ५५-तएणं से सेलगे पंथगपामोक्खे पंच मंतिसए एवं वयासी-'जइणं देवाणुप्पिया! तुब्भे संसारभयउव्विगा जाव पव्वयह, तं गच्छह णं देवाणुप्पिया ! सएसु सएसु कुडुंबेसु जेठे पुत्ते कुडुंबमझे ठावेत्ता पुरिस-सहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह' त्ति। तहेव पाउब्भवंति। - तत्पश्चात् शैलक राजा ने पंथक प्रभृति पांच सौ मंत्रियों से इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो! यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हुए हो, यावत् दीक्षा ग्रहण करना चाहते हो तो, देवानुप्रियो! जाओ और अपनेअपने कुटुम्बों में अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को कुटुम्ब के मध्य में स्थापित करके अर्थात् परिवार का समस्त उत्तरदायित्व उन्हें सौंप कर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ़ होकर मेरे समीप प्रकट होओ-आओ।' यह सुन कर पांच सौ मंत्री अपने-अपने घर चले गये और राजा के आदेशानुसार कार्य करके शिविकाओं पर आरूढ़ होकर वापिस राजा के पास प्रकट हुए-आ पहुँचे। ५६-तए णं से सेलए राया पंच मंतिसयाई पाउब्भवमाणाइं पासइ, पसित्ता हट्ठतुढे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं जाव' रायाभिसेयं उवट्ठवेह०।' अभिसिंचइ जाव राया जाए, जाव विहरइ। तत्पश्चात् शैलक राजा ने पांच सौ मंत्रियों को अपने पास आया देखकर हृष्ट-तुष्ट होकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा–'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही मंडुक कुमार के महान् अर्थ वाले राज्याभिषेक की तैयारी करो।' कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया। शैलक राजा ने राज्याभिषेक किया। मंडुक कुमार राजा हो गया, यावत् सुखपूर्वक विचरने लगा। ५७–तए णं सेलए मडुयं रायं आपुच्छइ।तए णं से मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव सेलगपुरं नयरं आसित्त जाव गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करित्ता कारवित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।' तए णं से मंडुए दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव सेलगस्स रण्णो महत्थंजाव निक्खमणाभिसेयं जहेव मेहस्स तहेव, णवरंपउमावई देवी अग्गकेसे पडिच्छइ।सव्वे विपडिग्गहं गहाय सीयं दुरूहंति, अवसेसं तहेव, जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिजइ, अहिजित्ता बहूहिं चउत्थ जाव छट्टट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।' ____ तत्पश्चात् शैलक ने मंडुक राजा से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी। तब मंडुक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा-'शीघ्र ही शैलकपुर नगर को स्वच्छ और सिंचित करके सुगंध की बट्टी के समान करो और कराओ। ऐसा करके और कराकर यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो अर्थात् आज्ञानुसार कार्य हो जाने की मुझे सूचना दो।' १. प्र. अ. १३३ २. प्र. अ. ७७ ३. प्र. अ. १३३
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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