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[ज्ञाताधर्मकथा भदं सत्थवाहिं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! धण्णे सत्थवाहे तव पुत्तघायगस्स जाव' पच्चामित्तस्स ताओ विउलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेइ।
तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथयस्स दासचेडयस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा आसुरत्ता रुट्ठा जाव (कुविया) मिसिमिसेमाणा धण्णस्स सत्थवाहस्स पओसमावन्जइ।
पंथक भोजन-पिटक लेकर कारागार से बाहर निकला। निकलकर राजगृह नगर के बीचों-बीच होकर जहाँ अपना घर था और जहाँ भद्रा भार्या थी वहाँ पहुंचा। वहाँ पहुँचकर उसने भद्रा सार्थवाही से कहादेवानुप्रिये! धन्य सार्थवाह ने तुम्हारे पुत्र के घातक यावत् [पुत्रहन्ता, शत्रु, वैरी (सानुबन्ध वैर वाले), प्रतिकूल आचरण करने वाले] दुश्मन को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से हिस्सा दिया है।
तब भद्रा सार्थवाही दास चेटक पंथक के मुख से यह अर्थ सुनकर तत्काल लाल हो गई, रुष्ट हुई [कुपित हुई] यावत् मिसमिसाती हुई धन्य सार्थवाह पर प्रद्वेष करने लगी। धन्य का छुटकारा
४२-तएणंधण्णे सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ।मोयावित्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ। पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ।उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं करेइ। करित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ। गेण्हित्ता पोक्खरिणिं ओगाहेइ। ओगाहित्ता जलमजणं करेइ। करित्ता पहाए कयबलिकम्मे जाव (कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए) रायगिहं नगरं अणुपविसइ। अणुपविसित्ता रायगिहस्स नगरस्स मझमझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
___ तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह को किसी समय मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिवार के लोगों ने अपने (धन्य सार्थवाह के) सारभूत अर्थ से-जुर्माना चुका करके राजदण्ड से मुक्त कराया। मुक्त होकर वह कारागार से बाहर निकला। निकल कर जहाँ आलंकरिक सभा (हजामत बनवाना, नाखून कटवाना आदि शरीर-शृंगार करने की नाई की दुकान) थी, वहाँ पहुंचा। पहुंच कर आलंकरिक-कर्म किया। फिर जहाँ पुष्करिणी थी, वहाँ गया। जाकर नीचे की धोने की मिट्टी ली और पुष्करिणी में अवगाहन किया, जल से मज्जन किया, स्नान किया, बलिकर्म किया, यावत् [कौतुक, मंगल, प्रायश्चित किया] फिर राजगृह में प्रवेश किया। राजगृह नगर के मध्य में होकर जहाँ अपना घर था वहाँ जाने के लिए रवाना हुआ। धन्य का सत्कार
४३-तए णं धण्णं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे नगरे बहवे नियग-सेट्ठिसत्थवाह-पभइओ आढ़ति, परिजाणंति, सक्कारेंति, सम्माणेति, अब्भुटुंति, सरीरकुसलं पुच्छंति।
तए णं से धण्णे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता जावि य से तत्थ
१. द्वि अ. सूत्र ३५