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द्वितीय अध्ययन : संघाट]
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३८-तए णं धण्णे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। तएणं से धण्णे सत्थवाहे मुहत्तंतरस्स बलियतरागंउच्चारपासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे विजयंतक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया! जाव अवक्कमामो।
तएणं से विजए धण्णं सत्थवाहंएवं वयासी-'जइणं तुमंदेवाणुप्पिया! तओ विपुलाओ असण-पाण-खाइम-साइमाओ संविभागं करेहि, ततो हं तुम्हेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमामि।'
धन्य सार्थवाह विजय चोर के इस प्रकार कहने पर मौन रह गया। इसके बाद थोड़ी देर में धन्य सार्थवाह उच्चार-प्रस्रवण की अति तीव्र बाधा से पीड़ित होता हुआ विजय चोर से फिर कहने लगा-विजय, चलो यावत् एकान्त में चलें।
तब विजय चोर ने धन्य सार्थवाह से कहा-देवानुप्रिय! यदि तुम उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करो अर्थात् मुझे हिस्सा देना स्वीकार करो तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चलूँ।
३९-तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजयं एवं वयासी-'अहं णं तुब्भं तओ विउलाओ असण-पाण खाइम-साइमाओ संविभागं करिस्सामि।'
तए णं से विजए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमढे पडिसुणेइ। तए णं से विजए धण्णेणं सद्धि एगंते अवक्कमेइ, उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ, आयंते चोक्खे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ता णं विहरइ।
___ तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने विजय से कहा-मैं तुम्हें उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग करूँगा-हिस्सा दूंगा।
तत्पश्चात् विजय ने धन्य सार्थवाह के इस अर्थ को स्वीकार किया। फिर विजय, धन्य सार्थवाह के साथ एकान्त में गया। धन्य सार्थवाह ने मल-मूत्र का परित्याग किया। फिर जल से स्वच्छ और परम शुचि हुआ। लौटकर अपने उसी स्थान पर आ गया।
४०-तए णं सा भद्दा कल्लं जाव' जलंते विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं जाव' परिवेसेइ।तएणं से धण्णे सत्थवाहे विजयस्स तक्करस्स तओ विउलाओ असण-पाण-खाइमसाइमाओ संविभागं करेइ। तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंथयं दासचेडं विसज्जेइ।
___ तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने दूसरे दिन सूर्य के देदीप्यमान होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके (पहले की तरह) पंथक के साथ भेजा। यावत् पंथक ने धन्य को जिमाया। तब धन्य सार्थवाह ने विजय चोर को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से भाग दिया। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह ने पंथक दास चेटक को रवाना कर दिया। भद्रा का कोप
४१-तए णं से पंथए भोयणपिडयंगहाय चारागाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता रायगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव सए गेहे, जेणव भद्दा भारिया, तेणेव उवागच्छइ।उवागच्छित्ता
१. प्र. अ. सूत्र २८
२. प्र. अ. सूत्र ३३-३४