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________________ ५२] [ ज्ञाताधर्मकथा १०४ – तए णं तस्स मेहकुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं सोहणंसि तिहि-करणनक्खत्त- मुहुत्तंसि सरिसियाणं सरिसव्वयाणं सरिसत्तयाणं सरिसलावन्न - रूव-जोव्वणगुणोववेयाणं सरिसएहिन्तो रायकुलेहिन्तो आणिल्लियाणं पासाहणट्टंग- अविहवबहुओवयणमंगल-सुजंपियाहिं अट्ठहिं रायवरकण्णाहिं सद्धिं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हाविंसु । तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने मेघकुमार का शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में शरीरपरिमाण से सदृश, समान उम्र वाली, समान त्वचा (कान्ति) वाली, समान लावण्य वाली, समान रूप (आकृति) वाली, समान यौवन और गुणों वाली तथा अपने कुल के समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ, एक ही दिन - एक ही साथ, आठों अंगों में अलंकार धारण करने वाली सुहागिन स्त्रियों द्वारा किये मंगलगान एवं दधि अक्षत आदि मांगलिक पदार्थों के प्रयोग द्वारा पाणिग्रहण करवाया। प्रीतिदान १०५ - तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो इमं एयारूवं पीइदाणं दलयइ-अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, गाहानुसारेण भाणियव्वं जाव' पेसणकारियाओ, अन्नं च विपुलं धण-कणग-रयण-मणि- मोत्तिय संख - सिल-प्पवाल- रत्तरयण-संतसारसावतेनं अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं भोत्तुं पकामं परिभाएडं । तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने (उन आठ कन्याओं को) इस प्रकार प्रीतिदान दिया-आठ करोड़ हिरण्य (चांदी), आठ करोड़ सुवर्ण, आदि गाथाओं के अनुसार समझ लेना चाहिए, यावत् आठ-आठ प्रेक्षणकारिणी (नाटक करने वाली) अथवा पेषणकारिणी (पीसने वाली) तथा और भी विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, मूंगा, रक्त रत्न (लाल) आदि उत्तम सारभूत द्रव्य दिया, जो सात पीढ़ी तक दान देने के लिये, भोगने के लिए उपयोग करने के लिए और बँटवारा करके देने के लिए पर्याप्त था । - १०६ – तए णं से मेहे कुमारे एगमेगाए भारियाए एगमेगं हिरण्णकोडिं दलयति, एगमेगं सुवन्नकोडिंदलयति, जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयति, अन्ननं च विपुलं धणकणग जाव परिभाएउं दलयति । तत्पश्चात् उस मेघकुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक करोड़ हिरण्य दिया, एक-एक करोड़ सुवर्ण दिया, यावत् एक-एक प्रेक्षणकारिणी या पेषणकारिणी दी। इसके अतिरिक्त अन्य विपुल धन कनक आदि दिया, जो यावत् दान देने, भोगोपभोग करने और बँटवारा करने के लिए सात पीढ़ियों तक पर्याप्त था । विवेचन - इस विवाह - प्रसंग पर दी गई वस्तुओं की सूची को देखने से स्पष्ट ज्ञात होता है कि गृहस्थी के उपयोग में आने वाली समस्त वस्तुएँ दी गई थीं, जिससे वे बिना किसी परेशानी के अपना काम चला सकें, उन्हें परमुखापेक्षी नहीं होना पड़े। १०७ - तए णं से मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं वरतरुणिसंप १. टीकाकार के मतानुसार ये गाथाएँ उपलब्ध नहीं हैं। अन्य ग्रन्थों से दूसरी गाथाएँ उन्होंने उद्धृत की हैं। देखिए टीका पृ. ४७ (सिद्धचक्रसाहित्यप्रचारकसमिति-संस्करण) ।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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