SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 865
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१०-९ उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं होते हैं। [१०] जदि सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ? नो इणढे समढे। [१०-१० प्र.] भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ? [१०-१० उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। ११. वाणमंतर जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥ एगचत्तालीसइमे सए : रासीजुम्मसते पढमो उद्देसओ॥४१-१॥ [११] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-सम्बन्धी (पूर्वोक्त) कथन नैरयिक-सम्बन्धी कथन के समान है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—विविध पहलुओं से जीवों की उत्पत्ति-सम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत १० सूत्रों (सू. २ से ११ तक) में राशियुग्म-कृतयुग्मरूप जीवों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में निम्नोक्त पहलुओं से विचार किया गया है—(१) ये जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (२) कितनी संख्या में उत्पन्न होते हैं ? (३) सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर? (४) किस प्रकार से उत्पन्न होते हैं ? (५) आत्म-यश से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्मअयश से? (६) आत्म-यश से जीवन चलाते हैं या आत्म-अयश से? (७) आत्म-यश या आत्म-अयश से जीवन चलाने वाले सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी? (८) सक्रिय होते हैं या अक्रिय ? (९) एक भव करके जन्म-मरण का अन्त कर देते हैं अथवा नहीं कर पाते ?' आत्म-यश तथा आत्म-अयश का भावार्थ-यश का हेतु संयम है। इसलिए यहाँ कारण में कार्य का उपचार करके 'संयम' के अर्थ में 'यश' शब्द का प्रयोग किया गया है। अतः 'यश' का अर्थ यहाँ संयम है और अयश का अर्थ है—असंयम।सभी जीवों की उत्पत्ति आत्म-अयश से अर्थात् आत्म-असंयम से होती है, क्योंकि उत्पत्ति में सभी जीव अविरत (असंयमी) होते हैं।' ॥ इकतालीसवां शतक : राशियुग्मशतक में प्रथम उद्देशक समाप्त॥ *** १. वियाहपत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण-युक्त) भा. ३, पृ. ११७४ २. भमवती. अ. वृत्ति, पत्र ९७८-९७९
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy