SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 864
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इकतालीसवाँ शतक : उद्देशक-१] [७३३ गोयमा ! नो सकिरिया, अकिरिया ? [१०-४ प्र.] भगवन् ! यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? [१०-४ उ.] गौतम ! वे सक्रिय नहीं होते, किन्तु अक्रिय (क्रियारहित) होते हैं। [५] जति अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ? हंता, सिझंति जाव अंतं करेंति। [१०-५ प्र.] भगवन् ! यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? [१०-५ उ.] हाँ, गौतम ! वे उसी भव में सिद्ध यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं। [६] जदि सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। . [१०-६ प्र.] भगवन्! यदि वे (तथाकथित मनुष्य) सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? [१०-६ उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं अक्रिय नहीं। [७] जदि सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ? गोयमा ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति, अत्थेगइया नो तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति। [१०-७ प्र.] भगवन् ! वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? [१०-७ उ.] गौतम ! कितने ही (मनुष्य) इसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं और कितने ही उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं होते, यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर पाते। [८] जति आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा, अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा। [१०-८ प्र.] भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? [१०-८ उ.] गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं अलेश्यी नहीं होते हैं। [९] जदि सलेस्सा किं सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। [१०-९ प्र.] भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy