SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 853
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२२] नवमाइचोद्दसमपज्जंता सया : पत्तेयं एक्कारस उद्देसगा नौवें से चौदहवें शतक पर्यन्त: प्रत्येक के ग्यारह उद्देशक १. कण्हलेस्सभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसन्निपंचेंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? ० एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहियकण्हलेस्ससयं । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ॥। ४० । ९ । १-११॥ [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी- भवसिद्धिक कृतयुग्म - कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न । [१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी औधिकशतक के अनुसार इसी अभिलाप से यह शतक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं', इत्यादि पूर्ववत् । २. एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि वि सतं । सेवं भंते! सेवं भंते ! ० ।। ४० । १० । १-११॥ [२] नीललेश्यीभवसिद्धिकशतक भी इसी प्रकार जानना । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं', इत्यादि पूर्ववत् । ३. एवं जहा ओहियाणि सन्निपंचेंदियाणं सत्त सयाणि भणियाण एवं भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायव्वाणि, नवरं सत्तसु वि सएसु 'सव्वपाणा जाव णो इणट्ठे समट्ठे ।' सेसं तं चेव । । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ० । ॥ भवसिद्धियसया समत्ता ॥ ४०-८-१४ ॥ ॥ चत्तालीसइमे सते चोद्दसमं सयं समत्तं ॥ ४०-१४॥ [३] संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के सात औधिकशतक कहे हैं, इसी प्रकार भवसिद्धिक सम्बन्धी सातों शतक कहने चाहिए । विशेष यह है इससे पूर्व सर्व प्राण, यावत् सर्व सत्त्व उत्पन्न हुए हैं ? [प्र.] सातों शतकों में क्या [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् । विवेचन — प्रस्तुत में कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक आदि नौवें से चौदहवें शतक तक का औधिक अतिश पूर्वक कथन किया गया हैं। ॥ चालीसवाँ शतक : नौवें से चौदहवें अवान्तरशतक तक सम्पूर्ण ॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy