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पढमे एगिदियमहाजुम्मसए :
तइयाइ-एक्कारसपज्जंता उद्देसगा प्रथम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : तीसरे से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त १. अपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ?
एसो जहा पढमुद्देसो सोलसहि वि जुम्मेसु तहेव नेयव्वो जाव कलियोगकलियोगत्ताए जाव अणंतखुत्तो॥
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० ॥ ३५॥१॥३॥
[१ प्र.] भगवन् ! अप्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार इस उद्देशक में भी सोलह महायुग्मों के पाठ द्वारा यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए ॥ १-३॥
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है.' इत्यादि पूर्ववत्। २. चरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कतो उववज्जति? एवं जहेव पढमसमयउद्देसओ, नवरं देवा न उववजंति, तेउलेस्सा न पुच्छिति। सेसं तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०॥३५।१।४॥
[२ प्र.] भगवन् ! चरमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथमसमय उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह उद्देशक भी कहना चाहिए। किन्तु इनमें देव उत्पन्न नहीं होते तथा तेजोलेश्या के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष सब बातें पूर्ववत् हैं ॥ १-४॥
"हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० २', इत्यादि पूर्ववत्। ३. अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजति ? जहा अपढमसमयउद्देसओ तहेव भाणियव्वो निरवसेसं।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ० ॥३५॥१॥५॥ __ [३ प्र.] भगवन् ! अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[३ उ.] गौतम! इस उद्देशक का समग्र कथन अप्रथमसमय उद्देशक (तीन) के अनुसार कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० २', इत्यादि पूर्ववत् ।