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पैंतीसवाँ शतक : उद्देशक २]
[६८९ [४] उनकी स्थिति भी इतनी ही (इसी प्रकार) है। उनमें आदि (पहले) के दो समुद्घात होते हैं, उनमें समवहत एवं उद्वर्तना नहीं होने से, इन दोनों की पृच्छा नहीं करनी चाहिए। शेष सब बातें सोलह ही महायुग्मों में अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक उसी प्रकार (प्रथम उद्देशक के अनुसार) कहनी चाहिए। .. _ 'हे. भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते
विवेचन—स्वरूप और भिन्नत्ताएँ—एकेन्द्रियरूप में उत्पन्न हुए, जिनको अभी एक समय ही हुआ है और जो कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप हैं, ऐसे एकेन्द्रिय को 'प्रथमसमयकृतयुग्मकृतयुग्मएकेन्द्रिय' कहते हैं। ये जीव प्रथमसमयोत्पन्न हैं, इसलिए इनमें जो बातें सम्भव नहीं, उन बातों का अभाव होने से प्रथमउद्देशक-कथित दस बातों से इनमें भिन्नता है।' ॥ पैंतीसवाँ शतक : प्रथम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥.
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१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९६८