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________________ ६८६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१८ उ.] गौतम ! वे एक समय में अठारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । शेष सव पूर्ववत् (सू. ४ से १४ तक कृतयुग्मएकेन्द्रिय के अनुसार) यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। १९. कडजुम्मकलियोगएगिंदिया णं भंते ! कओ उवव०? उववातो तहेव। परिमाणं सत्तरस वा, संखेजा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा। सेसं तहेव (सु० ४-१४) जाव अणंतखुत्तो। [१९ प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कल्योजरूप एकेन्द्रिय कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१९ उ.] गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् समझना चाहिए। इनका परिमाण है-सत्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त। शेष (सू. ४ से १४ तक के अनुसार) पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। २०. तेयोगकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? उववातो तहेव ! परिमाणं-बारस वा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा, अणंता वा उववजंति। सेसं तहेव ( सु० ४-१४) जाव अणंतखुत्तो। __[२० प्र.] भगवन् ! योज-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [२० उ.] गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् जानना। इनके प्रतिसमय उत्पाद का परिमाण है-बारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त। शेष (सू. ४ से १४ तक के अनुसार) पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। २१. तेयोयतेयोयएगिंदिया णं भंते ! कतो उववजंति ? उववातो तहेव । परिमाणं-पन्नरस वा, संखेजा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। सेसं तहेव (सु० ४-१४) जाव अणंतखुत्तो। [२१ प्र.] भगवन् ! योज-त्र्योजराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? __[२१ उ.] गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् है। इनके प्रतिसमय उत्पाद का परिमाण है—पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त । शेष सब (सू. ४ से १४ के अनुसार) पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं यहाँ तक जानना चाहिए। २२. एवं एएसु सोलससु महाजुम्मेसु एक्को गमओ, नवरं परिमाणे नाणत्तं तेयोयदावरजुम्मेसु परिमाणं चोद्दस वा, संखेजा वा, असंखेजा वा, अणंता वा उववजंति। तेयोगकलियोगेसु तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेजा वा, अणंता वा उववति। दावरजुम्मकडजुम्मेसु अट्ठ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा उववजंति। दावरजुम्मतेयोगेसु एक्कारस वा, संखेजा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववजति। दावरजुम्मदावरजुम्मेसु दस वा, संखेजा वा, असंखेजा वा, अणंता वा
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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