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________________ ६८४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र क्रियायुक्त होते हैं, क्रियारहित नहीं। वे सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं। वे आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा वाले होते हैं । वे क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी होते हैं । वे स्त्रीवेदी या पुरुषवेदी नहीं होते, किन्तु नपुंसकवेदी होते हैं। वे स्त्रीवेदबन्धक पुरुषवेद-बन्धक या नपुंसकवेद-बन्धक होते हैं । वे संज्ञी नहीं होते, असंज्ञी होते हैं। वे सइन्द्रिय होते हैं, अनिन्द्रिय नहीं होते हैं। १३. ते णं भंते ! 'कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिय' त्ति कालओ केवचिरं होंति ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं'–अणंतो वणस्सइकालो। संवेहो न भण्णइ आहारो जहा उप्पलुद्देसए (स० ११ उ० १ सु० ४०), नवरं निव्वाघाएणं छदिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चतुदिसिं, सिय पंचदिसिं। सेसं तहेव। ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, (अंतोमुहत्तं), उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साई। समुग्घाया आइल्ला चत्तारि, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति। उव्वट्टणा जहा उप्पलुद्देसए (स० ११ उ० १ सु० ४४)। [१३ प्र.] भगवन् ! वे कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक होते हैं? । [१३ उ.] गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल—अनन्त (उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीरूप) वनस्पतिकाल-पर्यन्त होते हैं। यहाँ संवेध का कथन नहीं किया जाता। इनका आहार उत्पलोद्देशक (श. ११, उ. १, सू. ४०) के अनुसार जानना, किन्तु वे व्याघातरहित छह दिशा से और व्याघात हो तो कदाचित् तीन, चार या पांच दिशा से आहार लेते हैं। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है। इनमें आदि (पहले) के चार समुद्घात पाये जाते हैं । ये मारणान्तिक समुद्घात से समवहत अथवा असमवहत होकर मरते हैं। इनकी उद्वर्तना उत्पलोद्देशक के अनुसार जाननी चाहिए। १४. अह भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता कडजुम्मकडजुम्मएगिंदियत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। [१४ प्र.] भगवन् ! समस्त प्राण, भूत, जीव और सत्त्व क्या कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियरूप से पहले उत्पन्न हुए हैं ? [१४ उ.] हाँ गौतम ! वे अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। विवेचन—कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय जीवों के विषय में कुछ स्पष्टीकरण—जिन एकेन्द्रिय जीवों में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार बचें और अपहार-समय भी चार हों वे कृतयुग्मकृतयुग्म एकेन्द्रिय कहलाते हैं। यहाँ प्रायः ग्यारहवें शतक के प्रथम उत्पलोद्देशक का अतिदेश किया गया है। ___ एकेन्द्रिय जीवों में संवेध असम्भव क्यों ?—उत्पलोद्देशक में उत्पल यानी कमल के जीव की उत्पत्ति विवक्षित हो और वह पृथ्वीकायादि दूसरी काय में जाए और फिर उत्पल में आकर उत्पन्न हो तब उसका संवेध संभावित होता है, किन्तु प्रस्तुत में कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि रूप एकेन्द्रिय का प्रकरण है और १. अधिकपाठ-किसी किसी प्रति में यहाँ इतना पाठ अधिक है—'अणंता ओसप्पिणि-उस्सपिणीओ........
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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