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पैंतीसवाँ शतक : उद्देशक-१]
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[९] इसी प्रकार सभी कर्मों के विषय में जानना चाहिए। १०. ते णं भंते ! जीवा किं सातावेदगा० पुच्छा।
गोयमा ! सातावेयगा वा असातावेयगा वा। एवं उप्पलुद्देसगपरिवाडी (स० ११ उ० १ सु० १२-१३) सव्वेसिं कम्माणं उदई, नो अणुदई। छण्हं कम्माणं उदीरगा, नो अणुदीरगा। वेयणिज्जाऽऽउयाणं उदीरगा वा, अणुदीरगा वा।
[१० प्र.] भगवन् ! वे जीव साता के वेदक हैं अथवा असाता के वेदक हैं ?
[१० उ.] गौतम ! वे सातावेदक भी होते हैं, अथवा असातावेदक भी एवं उत्पलोदेशक (श. ११, उ. १, सू. १२-१३) की परिपाटी के अनुसार वे सभी कर्मों के उदय वाले हैं, अनुदयी नहीं। वे छह कर्मों के उदीरक हैं, अनुदीरक नहीं तथा वेदनीय और आयुष्यकर्म के उदीरक भी हैं और अनुदीरक भी हैं।
११. ते णं भंते जीवा किं कण्ह० पुच्छा।
गोयमा ! कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काउलेस्सा वा। नो सम्मद्दिट्ठी, मिच्छद्दिट्ठी, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी। नो नाणी, अन्नाणी; नियमं दुअन्नाणी, तं जहा–मतिअन्नाणी य, सुयअन्नाणी य। नों मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। सागारोवउत्ता वा, अणागारोवउत्ता वा।
[११ प्र.] भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[११ उ.] गौतम ! वे जीव कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी अथवा तेजोलेश्यी होते हैं। ये सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते, मिथ्यादृष्टि होते हैं। वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी होते हैं, वे नियमत: दो अज्ञान वाले होते हैं, यथा-मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी। वे मनोयागी और वचनयोगी नहीं होते, केवल काययोगी होते हैं । वे साकारोपयोग वाले भी होते हैं और अनाकारोपयोग वाले भी होते हैं।
१२. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा० ? __ जहा उप्पलुद्देसए ( स० ११ उ० १ सु० १९-३०) सव्वत्थ पुच्छा। गोयमा ! जहा उप्पलुद्देसए। ऊसासगा वा, नीसासगा वा, नो ऊसासगनीसासगा। आहारगा वा, अणाहारगा वा। नो विरया, अविरया, नो विरयाविरया। सकिरिया, नो अकिरिया। सत्तविहबंधगा वा, अट्ठविहबंधगा वा। आहारसन्नोवउत्ता वा जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वा।कोहकसाई वा जाव लोभकसाई वा। नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा। इत्थिवेदबंधगा वा, पुरिसवेदबंधगा वा, नपुंसगवेदबंधगा वा। नो सण्णी, असण्णी। सइंदिया, नो अणिंदिया।
[१२ प्र.] भगवन् ! उन एकन्द्रिय जीवों के शरीर कितने वर्ण के होते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न (श. ११, उ. १) उत्पलोद्देशक (सू. १९ से ३० तक) के अनुसार।
[१२ उ.] गौतम ! उत्पलोद्देशक के अनुसार, उनके शरीर पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले होते हैं । वे उच्छ्वास वाले या नि:श्वास वाले अथवा नो-उच्छ्वास-नि:श्वास वाले होते हैं । वे आहारक या अनाहारक होते हैं । वे विरत (सर्वविरत) और विरताविरत (देशविरत) नहीं होते, किन्तु अविरत होते हैं। वे