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________________ ६७४] तइयाइपंचमसयपज्जंता सया : पढमाइ-एक्कारस्स-पजंता उद्देसगा तीसरे से पांचवाँ एकेन्द्रिय-श्रेणी-शतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त १. एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढम सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा। इसी प्रकार जैसा प्रथम श्रेणीशतक कहा है, उसी प्रकार यहाँ ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए। [१] एवं नीललेस्सेहि वि सयं। [१] इसी प्रकार नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव के विषय में तृतीय अवान्तरशतक है। [२] काउलेस्सेहि वि सयं एवं चेव। [२] कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय के लिए भी इसी प्रकार चतुर्थ शतक है। [३] भवसिद्धीयएगिदियेहिं सयं। ॥ चोत्तीसइमे सए : तइयाइ-पंचमपजंता सया समत्ता॥ ३४-। ३-५॥ [३] तथा भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय विषयक पंचम शतक भी समझना चाहिए। ॥प्रत्येक के ग्यारह उद्देशक समाप्त॥ ॥ चौतीसवाँ शतक : तृतीय से पंचम अवान्तर शतक समाप्त॥ ***
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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