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________________ [ ६७३ बिइए एगिंदियसेढिसए : पढमाइ एक्कारसपज्जंता उद्देसगा द्वितीय केन्द्रिय श्रेणीशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय: प्रकार तथा अन्य प्ररूपणा १. कतिविधा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिंदियसए जाव वणस्सइकाइय त्ति । [१ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? [१ उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे । उनक चार - चार भेद एकेन्द्रियशतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानने चाहिए । २. कण्हलेस्सअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रतणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले० ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंते त्ति । सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववातेयव्वो । [२ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमी - चरमान्त में उत्पन्न हो तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [२.उ.] गौतम ! औंघिक उद्देशक के अनुसार लोक के चरमान्त तक सर्वत्र कृष्णलेश्या वालों में उपपात कहना चाहिए । ३. कहिं णं भंते ! कण्हलेस्सअपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता ? एवं एएणं अभिलावेणं जहा आहिउद्देसओ जाव तुल्लट्ठितीए त्ति । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० । ॥ चौतीसइमे सए : बिइए अवांतरसए : पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ३४ । २ । १ ॥ [३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? [३ उ.] गौतम ! औधिक उद्देशक के इस अभिलाप के अनुसार 'तुल्यस्थिति वाले' पर्यन्त कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक समाप्त ॥ ॥ चौतीसवाँ शतक : द्वितीय अवान्तरशतक सम्पूर्ण ॥
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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