SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 794
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौतीसवाँ शतक : उद्देशक-१] [६६३ दाहिणिल्ले चेव उववातेयव्वो। तहेव निरवसेसं जाव सुहुमवणस्सतिकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु चेव पजत्तएसु दाहिणिल्ले चरिमंते उववातिओ। [६३ प्र.] भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके लोक के दक्षिण-चरमान्त में ही अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [६३ उ.] गौतम ! जिस प्रकार पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वी-चरमान्त में ही उपपात का कथन किया, उसी प्रकार दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में ही उत्पन्न होने योग्य का उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार यावत् पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का, पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों में दक्षिण-चरमान्त तक उपपात कहना चाहिए। ६४. एवं दाहिणिल्ले समोहयओ पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते उववातेयव्वो, नवरं दुसमइय-तिसमइयचउसमइओ विग्गहो। सेसं तहेव। [६४] इसी प्रकार दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम-चरमान्त में उपपात का कथन करना चाहिएं। विशेष यह है कि इनमें दो, तीन या चार समय की विग्रहगति होती है। शेष पूर्ववत् कहना चाहिए। ६५. एवं दाहिणिल्ले समोहयओ उत्तरिल्ले उववातेयव्वो जहेव सट्ठाणे तहेव एगसमइय-दुसमइयतिसमइय-चउसमइयविग्गहो।। [६५] जिस प्रकार स्वस्थान में उपपात का कथन किया. उसी प्रकार दक्षिण-चरमान्त में समदघात करके उत्तर-चरमान्त में उपपात का तथा एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति का कथन करना चाहिए। ६६. पुरथिमिल्ले जहा पच्चत्थिमिल्ले तहेव दुसमइय-तिसमइय-चउसमइय०। [६६] पश्चिम-चरमान्त में उपपात के समान पूर्वीय-चरमान्त में भी दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उपपात का कथन करना चाहिए। ६७. पच्चथिमिल्ले चरिमंते समोहताणं पच्चथिमिल्ले चेव चरिमंते उववजमाणाणं जहा सट्ठाणे। उत्तरिल्ले उववजमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसं तहेव। पुरथिमिल्ले जहा सट्ठाणे। दाहिणिल्ले एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसं तं चेव। [६७] पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम चरमान्त में ही उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक के लिए स्वस्थान में उपपात के अनुसार कथन करना चाहिए। उत्तर-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव के एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष सब पूर्ववत् । पूर्वी-चरमान्त में उपपात का कथन स्वस्थान में उपपात के समान है। दक्षिण-चरमान्त में उपपात में एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष सब पूर्ववत् है। ६८. उत्तरिल्ले समोहयाणं उत्तरिल्ले चेव उववजमाणाणं जहा सट्ठाणे। उत्तरिल्ले समोहयाणं पुरथिमिल्ले उववजमाणाणं एवं चेव, नवरं एगसमइओ विग्गहो नत्थि। उत्तरिल्ले समोहताणं दाहिणिल्ले उववजमाणाणं जहा सट्टाणे। उत्तरिल्ले समोहयाणं पच्चथिमिल्ले उववजमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसं तहेव जाव सुहुमवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy