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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उड्डलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा ?
गोयमा ! दुसमइएणं वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा।
[४७-१ प्र.] भगवन् ! यदि अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोकक्षेत्र की त्रसनाडी से बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है?
[४७-१ उ.] गौतम ! वह दो समय या तीन समय (अथवा चार समय) की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं०? अट्ठो तहेव सत्त सेढीओ।
[४७-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया है कि वह दो या तीन (या चार) समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
[४७-२ उ.] गौतम ! इसका कथन पूर्वोक्त प्रकार से सप्तश्रेणी तक समझना चाहिए।
४८. एवं जाव अपजत्तबायरतेउकाइए णं भंते ! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्डलोगखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते पज्जत्तसुहुमतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! ०
सेसं तं चेव।
[४८ प्र.] भगवन् ! इसी प्रकार यावत् जो अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोकक्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में पर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक-रूप में उत्पन्न हो तो वह कितने समय की विग्रहगति से ................?
[४८ उ.] गौतम ! इसका कथन भी पूर्वोक्त प्रकार से ही जानना चाहिए।
४९. [१] अपजत्तबायरतेउकाइए णं भंते ! समयखेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?
गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। ___ [४९-१ प्र.] भगवन् ! यदि अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
[४९-१ उ.] गौतम ! वह एक समय, दो समय या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं०? अट्ठो जहेव रयणप्पभाए तहेव सत्त सेढीओ।