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________________ ६५६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! विसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। [३८-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोक की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [३८-१ उ.] गौतम ! वह तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [२] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति—तिसइमएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा ? गोयमा ! अपजत्तसुहमपुढविकाइएणं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए एगपयरम्भि अणुसेढिं उववजित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववजेज्जा, जे भविए विसेढिं उववजित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववजेजा। से तेणटेणं जाव उववजेजा। [३८-२ .] भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है कि वह जीव तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [३८-२ उ.] गौतम ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोकक्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के रूप में एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) में उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और जो विश्रेणी में उत्पन्न होने योग्य है, वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ३९. एवं पजत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए वि। ___ [३९] इसी प्रकार जो पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होता है, उसके विषय में भी समझना चाहिए। ४०. जाव पजत्तसुहुमतेउकाइयत्ताए। ___ [४०] इसी भांति जो पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक-रूप से उत्पन्न होता है, उसके विषय में भी जानना चाहिए। ४१.[१]अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग जाव समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? गोयमा ! दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। [४१-१ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य हो तो भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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